रातें तो तनहा कभी न होतीं
अगर सोच में भी इशारा जो होता
दिलों की ये धड़कन बढ़ी भी न होती
अगर तेरा कुछ तो सहारा जो होता
मुक्कद्दर की बातें कभी भी न करते
अगर ये मुक्कद्दर हमारा जो होता
वहीँ पे ख़त्म दिल की हर आरज़ू थी
अगर यही दिल तो हमारा जो होता
अगर सोच में भी इशारा जो होता
दिलों की ये धड़कन बढ़ी भी न होती
अगर तेरा कुछ तो सहारा जो होता
मुक्कद्दर की बातें कभी भी न करते
अगर ये मुक्कद्दर हमारा जो होता
वहीँ पे ख़त्म दिल की हर आरज़ू थी
अगर यही दिल तो हमारा जो होता
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