Wednesday 30 October 2013

मोह्हबत प्यार का अफ़साना ,
कहीं तुम भूल न जाना
मुझे तुम याद ही आना
यही होता है पैमाना

गुनाहें  अश्क न होती
मोह्हबत यूँ न जो होती
मगर मंज़ूर होता है
दिलों का नूर होता है

तंमनायें  बदलती हैं
किसी मुश्किल से वादों पर
कहीं मंज़र बदल जाते
किसी मुश्किल इरादों पर

मोह्हबत वो नहीं होती कि
तुम बदनाम हो जाओ
मोह्हबत तो जमानें में
सदा बदनाम करती है

Tuesday 29 October 2013

मैं प्यार का सागर हूँ तो क्या ,तूफान भी तो आते होंगें
पोखर जैसा मैं  हूँ मैला ,पर कमल भी खिल जाते होंगें
ए होश उड़ाने वालों अब,  तुम बेहोश न हो जाना
अब तक दरिया कहने वालों ,अब तुम खामोश न हो जाना


Sunday 27 October 2013

मैं खुशबु नहीं ,रंगदार हूँ तेरा
अपने दामन  में समेट  लो
मैं प्यार हूँ तेरा
कोशिशें तो लाख की इनकार  नहीं करता
कौन जालिम कहता है की
मैं प्यार नहीं करता 

Thursday 10 October 2013

मैं तेरे झोंके में मदहोश हुई हूँ
राधा बन कान्हा की खामोश हुई हूँ
प्यार का फसाना अफसाना न बन जाये !!
यही सोच सोच मैं बेहोश हुई हूँ
ए दोस्त जिंदगी का सफ़र हम सब से कभी न छुटे
हम साथ जो तेरे तो रब भी कभी न रूठे
मैं सोचता हूँ आज भी औ कल भी साए के जैसा साथ तेरा
ऐसे मस्तियाँ कर जायें की रब भी सुने तो हंसी छुटे। 

Wednesday 9 October 2013

बदनामियों के पीछे कुछ राज तो नही है
इस राज की कहानी कवि आज जनता है
मालूम है ना तुमको दुनिया बड़ी नशीली
चड़ता है जब नशा ये बदनाम मानती है
ढलता है जब नशा ये गुमनाम मानती है
लगती है ये कहानी उस मोड़ तक ना जानी 
उस मोड़ पर छुपा क्या कवि राज जानता है

बदनाम कितने कर लो ज़िंदगी के इस सफ़र मे
ये दौर ना पुराना सब आज जानते हैं
गुस्ताख हैं सदायें पीछा कभी ना छोड़ें,
बस है समय की बेला छूटे हैं कुछ पुराने
शायद वो अब ना आने जब हैं बने बेगाने
बदनामियों के तह में बहती है कैसी गंगा
कितने भी तुम छुपा लो कितने भी तुम घुमा लो
रब राज जानता है ..

कितने भी तुम लगा दो बेगैरियत के ताने
तानों से कुछ ना होगा इल्ज़ाम ज़ानता है
अब दिल के मंज़रों में पतवार क्या चलाना??
जब सब्र के ही बंधन तोड़े हुए हैं अपने
अपने हुए पराए अपनो ने की जो खाई
खाई है कितनी गहरी कवि राज जनता है

गहराइयाँ बढ़ा दो या भेंट भी चढ़ा दो
सच्चाइयों का दामन हरदम रहेगा उज़ला
तुम तोड़ ना सकोगे ,मरोड़ ना सकोगे
ये रोग है पुराना इल्ज़ाम भी नया ना
इल्ज़ामियत के साए आगे ना बढ़ सकेंगें
इतिहास का ठिकाना ,इतिहास जनता है

Sunday 6 October 2013

माँ तेरे चरणों में हूँ आया
अपना रज, तम, भी मैं लाया
 मन की हर मैली काई को
तेरे शरणो  में छोड़ चलूँ
ऐसा ही बल हमको देना

माँ अपनी काँति  हमें देना
अपनी हर शांति हमें देना
माँ देना तो ऐसा वर देना
हर क्षण ,हर कण ,हर पल जीवन
श्रधा ,भक्ति ,में चूर रहे


मैं कवी हूँ ,पर मेरा भी तो दिल है
पीड़ा हुई तो कविताओं में निकल जाती है

आंशू बने तो भावनाओं में छलक जाते हैं
पर पीड़ा तो आखिर पीड़ा है

दर्द तो इस दिल में भी होता ही है
आखिर क्यूँ ये दिल निपट अकेले में
अक्सर ही रोता  है

ये भी तो दिल ही है ,इसमें भी अरमान कुछ हैं
कुछ बातें कह तो सकता नहीं ,पर निकल पड़ती है जान बहुत

इस दुनिया में मैं ही झूठा हूँ ,लगते  हर मर्ज पुराने हैं
दुनिया वालों कुछ तुम भी तो जानो
क्यूँ आज बने अनजाने हैं

चढती कलियों के दीवाने होते हैं  सब ,हम बुझती ज्वाला के भी दीवाने हैं
ये आज के माली बन बैठे ,मुरझाती उनकी क्यारी है

सब सहता आया आज तलक ,अब भी सहने की ही बारी है
मैं दुनिया को क्या समझाऊँ ,जब न सुनने की बीमारी है
जब  झलक रही लाचारी है ,ये दुनिया बड़ी बीमारी है 

Friday 4 October 2013

माँ …. . .
तेरे प्यार की शुरुवात हो चली है

दर्शन के आस की ,अब प्यास बढ़ चली है '
नित नए रूपों में ,स्वागत है तुम्हारा
ये दास अब जीवन का हर ज्ञान हारा
दर्शन दो ,भक्ति दो ,ज्ञान अब बढा दो
मेरे हर पीड़ा को ,दया कर उडा दो

समर्पण कर खुद को ,
चरणों की रज धारी है
माँ अब तेरे दर्शन की
हम सब ने कर रखी तैयारी है
 
हम बालक हैं ,अज्ञानी हैं
हम  तुक्ष  हैं हम नादानी हैं
माँ हम पर अब एह्सान करो
माँ हम पर इतना ध्यान धरो 

Thursday 3 October 2013

मैं क़िस से बात करूँ
और किस से न करूँ
परेशानियों की जड़ है
ये साली   …  जिंदगी

कभी इधर कभी उधर
कभी आर कभी पार
लगाती है हर बार
सजाती है कुछ प्यार

जिंदगी है ऐसे क्यूँ , कि
कुछ परेशांन  सा रहता हूँ
हर उस साये से अनजान सा रहता हूँ
दिखाती है क्या क्या ??
सिखाती  भी यही है, ये साली जिंदगी . . .

ये जिंदगी है क्या. .  . .
कोई पहेली ??
सुलझ़ाती  भी तो  नहीं है
सवालों से भरी रहती

उलझनो से परे रहती
पर जिंदगी तो जिंदगी है
कुछ तो खास बनाती है
जो तोहफों से सजाती है

बस समझने का फेर है
नहीं क्या क्या अरमान दिखाती है
पाने की देर है ,बस
नहीं, सबको ये हंसाँती है
बस समय का फेर है

इसीलिए इस जिंदगी में देर है
क्यूंकि , बस समय का फेर है   .   

Tuesday 1 October 2013

भुला देती  दुनिया ,मनाती नहीं हैं
हुआ क्या था उस दिन  बताती नहीं है
मनाते हैं हम तो जनम आज दिन भी
कलम लिखती कुछ है सुनाती नहीं है 
वह जी गाँधी ,
खूब चलाई थी आँधी ,
आए थे लंगोट में ,
एब दिखते हैं हर एक नोट में
सिक्का क्या  क्या चलाया था ,
नारा क्या क्या लगाया था
मक़सद थी आज़ादी
अहिंसा से दिलाया था
मानते नहीं आज
जानते सभी हैं
भूले सब नारे हैं
डर अब तो स्वतंत्रता का
दोहन की सब कर चुके तैयारी हैं
सपना यही था तुम्हारा ,
सब सपनों को तोड़ चले
मर्यादा मोड़ चले
कहीं भूल ना जायें ये
राष्‍ट्रिया दिवस भी
दर अब बस तेरा है
गाँधी की वाणी ले ,
"डायर" बन जाते हैं
जनता के खून पसीने को
धार दे बहाते हैं
आज हमारे देश के नेता
ऐसे ही गाँधी ज्यंती मनाते हैं
आज हमरे देश के नेता ....
टूटे हुए दिल में आवाज़ नहीं होती ,
इस रौशनी की चमक भी अंधकारों में है खोती,
दिल काँच का टूटा मगर जुड़ने की चाहत लाया है ,लेकिन ,
ज़माने में फैले इन अंधकारों को तो देखो !!!
ये आज भी इसे न जुड़ा पाया है