Wednesday 9 October 2013

बदनामियों के पीछे कुछ राज तो नही है
इस राज की कहानी कवि आज जनता है
मालूम है ना तुमको दुनिया बड़ी नशीली
चड़ता है जब नशा ये बदनाम मानती है
ढलता है जब नशा ये गुमनाम मानती है
लगती है ये कहानी उस मोड़ तक ना जानी 
उस मोड़ पर छुपा क्या कवि राज जानता है

बदनाम कितने कर लो ज़िंदगी के इस सफ़र मे
ये दौर ना पुराना सब आज जानते हैं
गुस्ताख हैं सदायें पीछा कभी ना छोड़ें,
बस है समय की बेला छूटे हैं कुछ पुराने
शायद वो अब ना आने जब हैं बने बेगाने
बदनामियों के तह में बहती है कैसी गंगा
कितने भी तुम छुपा लो कितने भी तुम घुमा लो
रब राज जानता है ..

कितने भी तुम लगा दो बेगैरियत के ताने
तानों से कुछ ना होगा इल्ज़ाम ज़ानता है
अब दिल के मंज़रों में पतवार क्या चलाना??
जब सब्र के ही बंधन तोड़े हुए हैं अपने
अपने हुए पराए अपनो ने की जो खाई
खाई है कितनी गहरी कवि राज जनता है

गहराइयाँ बढ़ा दो या भेंट भी चढ़ा दो
सच्चाइयों का दामन हरदम रहेगा उज़ला
तुम तोड़ ना सकोगे ,मरोड़ ना सकोगे
ये रोग है पुराना इल्ज़ाम भी नया ना
इल्ज़ामियत के साए आगे ना बढ़ सकेंगें
इतिहास का ठिकाना ,इतिहास जनता है

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