Tuesday 1 October 2013

वह जी गाँधी ,
खूब चलाई थी आँधी ,
आए थे लंगोट में ,
एब दिखते हैं हर एक नोट में
सिक्का क्या  क्या चलाया था ,
नारा क्या क्या लगाया था
मक़सद थी आज़ादी
अहिंसा से दिलाया था
मानते नहीं आज
जानते सभी हैं
भूले सब नारे हैं
डर अब तो स्वतंत्रता का
दोहन की सब कर चुके तैयारी हैं
सपना यही था तुम्हारा ,
सब सपनों को तोड़ चले
मर्यादा मोड़ चले
कहीं भूल ना जायें ये
राष्‍ट्रिया दिवस भी
दर अब बस तेरा है
गाँधी की वाणी ले ,
"डायर" बन जाते हैं
जनता के खून पसीने को
धार दे बहाते हैं
आज हमारे देश के नेता
ऐसे ही गाँधी ज्यंती मनाते हैं
आज हमरे देश के नेता ....

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