Saturday 30 November 2013

यूँ ही गुजर गए थे दो पल
कुछ सपनों की ख्वाहिश में
दिल सबका आबाद ही रहा
बच्चों की फ़रमाइश में

हल्ला गुल्ली शोर शराबा
कितने रंग दिखाए थे
कितने ही मुस्काते चेहरे
उस महफिल में आये थे

पता नहीं कुछ होता क्या है
पता नहीं क्या हुआ जा रहा ?
बच्चे तो भोले भाले बन
हो अनजान से आये थे  

यही हुनर है ये  DRISTI है
यही समर्पण की  सृस्टि  है
जिसके  सपनों को साकार
आज किये हम सब मिल यार 

नए "जोश" ने ढंग दिखाया
जिसे  2K13 ले आया
ऐसे इच्छा सब दिखलाना
ऐसी DRISTI सब अपनाना

उड़ने के लिए भी तो इंसान नहीं हैं हम
बढ़ने को जैसे दिल में तूफ़ान लिए  हैं हम
हम तो वो खुशबु हैं जो ज़माने को महक देते हैं 
पर किसी ज़माने के मोह्हबत की पहचान नहीं हैं हम 

Thursday 28 November 2013

मैं रंग हूँ ,आवाज़ हूँ ,अंदाज़ हूँ ,तुम्हारा हूँ ,
मैं धड़कनों की नाज़ हूँ ,फिर भी मैं गँवारा हूँ

ये ज़ुल्म की है दुनिया ,इस सोच का सहारा हूँ
प्यार कर के देख लो ,आज भी तुम्हारा हूँ

हम दर्द नहीं देते , की  प्यार की  ख़ताएँ
आँखों से अश्रु पोंछें ,थोडा तो मुस्कुराएँ

अंजाम ले के जीना , इल्ज़ाम का सहारा
ये आज का है आशिक़ ,इस दौर में ये हारा

चाहे  रंग बदल डालो ,आवाज़ भुला दो तुम
ये इश्क़ का फ़साना अब क़ब्र तक चलेगा

जब धड़कनों  ने  की हैं ऐसी मधुर ख़ताएँ
तब दिल का क्या ठिकाना हम भी तो मुस्कुराएँ

इस सोच से उठो तुम ,ये सोच बदल डालो
ये इश्क़ की है दुनिया हरदम जियो नया सा 

Wednesday 27 November 2013

मन की  पीड़ा दुःख में नहीं है
प्यार वाले  आँसू दिल तक ही सही है
तकदीर बदलने से कोई इनकार नहीं करता
ज़माने से डरकर कोई प्यार नहीं करता 

Saturday 23 November 2013

प्यार तक जताया था ,आँखों से बताया था
फिर भी तुम नहीं माने ,मुझको ही रुलाया था

प्यार वाली पीड़ा कभी  जान नही  पाओगे
अपने हर ख्यालों से मुझको ही रुलाओगे

आखिर क्या कुसूर मेरा ,तुझको जो अपनाया था
अपने हर दामन का मैंने  राज भी बताया था

दूर तुमसे जाने का भी न ख्याल आया था
फिर भी तेरे अक्स  ने ही मुझको क्यूँ रुलाया था

प्रेम किया दर्द सहा , इस जहाँ का मर्ज़ सहा
सपनों तक को लाने में अब दर्द उभर ही आता है

इस पीड़ा को देख के मुझसे ,मेरा मन घबराता है
इस पीड़ा को देख के मुझसे ,मेरा मन घबराता है

Tuesday 19 November 2013

उड़ान गर ऊँची न हो तो ,मज़ा नहीं है
मज़बूरियों से ही रास्ते खुलें,तो सजा नहीं है
चाक चौबंद होके ,मोह्हबतों से ही  गुमराह हो जाना
ऐसा  इश्क़ करने कि भी कोई वज़ह नहीं है 

Monday 18 November 2013

मैं कविता तेरी पढता हूँ
कवियों के इस सम्मलेन में
मैं वही किताबें पढता हूँ
पत्नी तेरे हर बेलन में

जब राग रसाया  था मैंने
जब रूप नहीं श्रृंगार मिला
क्या क्या इच्छाएं लाया था
कैसी पत्नी  का  प्यार मिला

जो मिलना था वो मिला नहीं
जब खिलना था तब खिला नहीं
अब मिल के क्या कर पाना है
सारा जीवन पछताना है

हे भाग्यवान !! हे जड़वंता !!
हे गुण प्रधान !! हे पतिवंता !!
क्या क्या उपमाएं लाया था
अब क्या उपमा दोहराता हूँ

मैं  भी पत्नी का पीड़ित हूँ
बस पत्नी ,राग सजाता हूँ



ज़िंदगी की परेशानियों ने बेसहारा बना दिया
प्यार के जहाँ ने आवारा  बना दिया
मुक्कमल नहीं था ठिकाना कहीं और
गर्दिशों ने गोद ले सितारा बना दिया 

Sunday 17 November 2013

"सचिन" तुम महान  हो ,"क्रिकेट" के भगवान हो 
अब ऐसे नारे स्टेडियम में न गूँज पाएंगें 


Thursday 14 November 2013

नमन है DRISTI को ,हम सब की इस श्रृष्टि को
त्याग बनी  अब तपोभूमि ये  प्यारी है
इन बच्चो  के  आशाओं  की
DRISTI  करती  रखवाली है

DRISTI की  शक्तियाँ
DRISTI  की  वाणियाँ
DRISTI  के उद्देश्  एवं
DRISTI  की  निशानियाँ

अविराम चलती रहेंगीं
प्रयासों से उभरती रहेंगीं
मार्ग दिखाएँगी समाज को
सुधरेंगीं हर उस आज को
जो कल संवार सके


Thursday 7 November 2013

किसी मज़हब पे मिट जाना हमें अच्छा नहीं लगता
कभी वादों से हट जाना हमें अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी शोखियाँ उठतीं हैं सम्माए फरिस्तों पे
तुम्हें यूँ देख अनजाना हमें अच्छा नहीं लागता 
प्यार कि भाषा नहीं ,परिभाषाओं का बुरा हाल है
हर आशिक इश्क़ के इस दौर में बेहाल है 
इन हसीं लम्हों को कुछ पल और बढ़ा दो
आँखों कि गुमशुदगी को अब चाहत से दूर मिटा दो
ये इकरारे जश्न है जो दूरियाँ मिटाता है
नहीं तो झूठी मोह्हबत का फ़साना
आजकल हर कोई बेमौसम ही गाता है

आपकी मद भरी मुस्कान से दर लगता है 
तारीफ़ तो करने से दीदार हो जाता है
गौर फरमाये
तारीफ़ तो करने से दीदार हो जाता है
पलकें झुका लिए तो
हमें प्यार हो जाता है 

Wednesday 6 November 2013

अदाएँ जान न पाओ ,
मोह्हबत के फ़साने का
बहुत ही दर्द दे जाती
"दिलोँ" को इस ज़माने का 

Tuesday 5 November 2013

कई अनजान चेहरे लगे हैं आज भी 
हाँथों  में रँग  सजाने को 
है प्रीत की  राह बड़ी मुश्किल 
फिर भी हँसकर अपनाने को 
सोचा न था कुछ भी ऐसा 
भी रह जायेगा पाने को 
है प्रीत की  राह बड़ी मुश्किल 
फिर भी तैयार खड़ा हूँ जाने को 

Monday 4 November 2013

खर्चाये इंसान है ,इश्क़ भी हैरान है
तक्कलुफ़ मोह्हबत की  है यहाँ
सारा मंज़र वीरान है ,
प्रेम के दो लफ्ज़ नहीं हैं
ये कैसा इंसान है
गुमान है ,गुरुर है
कहता -बेकसूर है
पर फ़िक्र कर ले
सोच ले,सब
तेरा ही कसूर है

Friday 1 November 2013

दीपावली...

 दिल के अंधकारों को बन ज्योत हम जलाएंगे
दूर हो हर एक बुराई  ये ही अलख जगाएंगें
रोशनी करती रहे ,हर एक सजग बढ़ती रहे
इस समर्पित भाव से ,मन मे भी दीप जलाएँगें...