Monday 4 November 2013

खर्चाये इंसान है ,इश्क़ भी हैरान है
तक्कलुफ़ मोह्हबत की  है यहाँ
सारा मंज़र वीरान है ,
प्रेम के दो लफ्ज़ नहीं हैं
ये कैसा इंसान है
गुमान है ,गुरुर है
कहता -बेकसूर है
पर फ़िक्र कर ले
सोच ले,सब
तेरा ही कसूर है

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