Saturday 31 August 2013

वो  प्यारे दिन अपने अब  लौट न पायेंगें
अब यादों में सिसक सिसक हम आंसू और बहायेंगें

बचपन में माँ के हांथों का अमृत सा रस  प्यारा था
रात की लोरी पर माँ के पहला अधिकार हमारा था

सुबोह शुरू माँ की थपकी से रात भी माँ ही सहारा था
देख मुझे वो खुश हो जाती,लल्ला,लाल मुझे कह लाती
गुड्डों से गुड़ियों की बातें, नए तरीके वो आजमाती
रोते मुझको देख ज़रा भी, आंचल से अपने लिपटाती

मेरे नखरे ,मेरे ताने ,मेरे सब किस्से मनमाने
सब कुछ  सहती ,हँसती रहती
माँ से माँ तक दिल से जाँ तक मैं आँखों का तारा था
रात की लोरी पर माँ  के पहला अधिकार हमारा था

माँ की हर इच्छा में मैं था ,माँ के हर सपने में मैं था
माँ की हर वाणी से  बेटा ,माँ की ही गोदी भी तय था
दुनिया में आने से पहले माँ ,को  कोख से ,प्यारा था
माँ की हर ममता पर अब पहला अधिकार हमारा था

किस्से भी वो खूब सुनाती, हर किस्से में राजा बनाती
अगर सवारी भी मांगूँ तो खुद ही वो घोड़ा बन जाती
मेरी आहट पे मुस्काती ,मेरे क़दमों पे इतराती
मेरी हर मुस्कान ने  ही माँ की मुस्कान सवांरा था
माँ की हर ममता पर अब पहला अधिकार हमारा था

थोड़ी सी जब समझ थी आयी,एडमिशन मेरा कर वायी
मस्त हुआ तब  यारी में पड़ती माँ ज़िम्मेदारी में
मैं ही उसका राजा था, उसकी आँखों का तारा था
माँ की हर उम्मीदों का मैं ही मैं एक सहारा था

मन से रोज़ मुझे नहलाना ,थक जाऊं तब पाँव दबाना
अगर चिढ़ा दे कोई मुझको ,माँ का तब उससे लड़ जाना
मुझको हर शेखी करवाना ,पा की डांट से मुझे बचाना
अगर शरारत ज्यादा होती ,तब मेरे लड़कपन का बहाना

हाय ! कितना प्यारा था वो बचपन ,कितनी अच्छी  वो मनमानी
अब इस जीवन में न जाने कब होगी फ़िर वो शैतानी
बचपन की यादों का कुछ तो किस्सा लाया हूँ
माँ की ममता का एक छोटा हिस्सा लाया हूँ

माँ ने कितना त्याग किया है,माँ ने क्या बलिदान दिया  है
माँ की ममता माँ ही जाने,और कोई कैसे पहचाने
माँ की हर आहट को भी वैसे उनका बच्चा पहचाने
तभी समर्पित माँ जीवन को थोडा कुछ हम दे पाएँगें
नहीं तो यारों फिर कैसे हम इतनी प्यारी माँ पायेंगें
नहीं तो यारों फिर कैसे हम इतनी प्यारी माँ पायेंगें

Friday 30 August 2013

मेरा देश चमन मेरा भेष चमन
ये वाणी रहे सन्देश चमन
तेरे प्यार पे ही है अब  जीना
तेरे दर्द को ही अब है  पीना
मेरी साँस रहे ,मेरी  रूह कहे

इस वतन की खातिर बेटों को
बलि की बेदी तक जाना है
हम हिन्दोस्तानी भारत
की रक्षा पर जान लुटाएँगें

हम सीमा के  घुसपैठी को
भारत से मार भागेयेगें

तुम ये  जो लिख  रहे हो
ज़ुल्मों की दास्तानें
कितने भी लफ्ज़ लिख दो
बदलें नहीं ज़माने

हैं आज भी यहाँ पर
सरगोशियों का साया
करता है ज़ुल्म कोई
इल्ज़ाम कोई पाया

ये वक़्त की नसीबी
कुछ टाल क्या सकेगी
बेवक्त जब बलाएं 
आतीं रहीं नईं हैं 
पापा की कसम
दुनिया से  हैरान बहुत हूँ
चाहूँ  तो
मगर छोड़ना
परेशान बहुत हूँ

लगता है मुझको ऐसे
 सभी जानते बहुत हैं
कितना भी हों गुरुर
मगर मानते बहुत हैं

ये सोच  तो थी झूठी
हुआ था जब खुलासा
अब आज न बचा है
देने कोई दिलासा

सब मस्त अपनी दुनियाँ
इकरार कर रहें हैं
हम आज तक ज़माने से
प्यार कर रहें हैं 
मैं तेरे प्यार की खुशबू सँवार लूँ
न जाने आगे किस मोड़ पे





जुखाम हो जाये 
ज़माना हर कदम पे आज तेरे हमनशीं हैं
मुह्हबत की कहानी भी कहीं कुछ कम नहीं हैं
अगर तुम सोच के बैठे दीदारे आम ही  होगा तो
दीवाने आज भी उनके वो वैसी दिलनशीं हैं

नजदीकियां बढाने से दर्द कम न होगा
ये गमे मोह्हबत है,
पास आने से सिसकता है
दूर जाने से घबराता है
ये ज़माने में अहमियत
को नहीं देखता
अगर इश्क सच्चा है
तो अपनाता है
नहीं तो लाख कोशिशें
भलें कर लें इंशा
ये बस दर्द दे जाता है
ये बस आँखों की चमक
को खामोश कर जाता है 
वो ज़माने और भी रहें होंगे
जब हम तेरी यादों में रोया करते थे
आज तो यादों के महल  को
आसुओं के मोती से पिरोकर
हमने भी म्यूजियम बना रखा  है 
तेरी ऒर
बढ़े जो कदम हरदम
तेरे प्यार में जीने मरने को
मैं हरदम ही तैयार रहूँ
मेरी लाचारी ,
तेरी रूश्वाई ,
मुझे समझ नहीं
कैसे छोडूँ
ये इजहारी
ये इकरारी
हर पल को मैं जीना चाहूँ
तेरे साथ मगर
आसान नहींइइ
सब सही हुआ
सब अच्छा था
आखिर में  क्यूँ
अनजान रही
इसमें क्या कुसूर है मेरा
जब दिल मेरा  मज़बूर रहा
मेरी सांसों को तेरी खुशबू का
आखिर दम  तक  इंतज़ार रहे


बेकार रहीं कोशिश सारी
तुझे बेरुखी का जूनून है
तुझे याद करूँ
तेरा प्यार को पाने की फिर से फ़रियाद  करूँ

मैं सो न सकूँ उन रातों को
जब  ज़िक्र तेरा कोई कर जाए
शोर ही शोर उठे हर पल
हर साँसों की उन आहोँ में
जो गुजरी हुई जो चलती रहीं
जो वक़्त के साथ
बदलती रहीं
जो गुज़री हुईं जो
चलती रहीं जो वक़्त के साथ
बदलती रहीं


Wednesday 28 August 2013

तेरे इश्क ने
दिल को नेता
बना दिया है
वादे , कसमें
झूठी दिलासायें तो बहुत
दिलाता है
पर ,पर
पूरा करने के
लिए समय माँगता है 
बिगडों को सवांरना आता है
डांट के साथ प्यार भी निभाना आता है
दोस्त तो दोस्त होते ही हैं
नाराज़ होने पे ही चाह होती है
नहीं तो कमीनों को
लड़कियों को छोड़
किसकी परवाह होती है 
BIT में गौर्ड्स की लाइफ ऐसी है की कितना भी सिटी बजा लें ,लडकियाँ भैया ही बुलाती हैं 
शिकायत करते तो शायद पत्थर इतने मज़बूत न होते
किसी के दिल को तोड़ कर इतने मदहोश न होते
ये तो शीशे की खुशनसीबी है की वो पत्थर से ही टकराता है
वर्ना तोड़ने के लिए ज़माने की ठोकरें ही काफीं हैं 
कान्हा सी नदिया में कान्हा सा धाम मिले
गोपी बन राधा की कान्हा को प्रणाम मिले
कान्हा का प्यार लिए कान्हा से श्याम मिले
कान्हा का  शशि भी हो कान्हा से राम मिलें 

Tuesday 27 August 2013

सभी मनुष्यों  को मेरी तरफ से भगवान श्री कृष्णा के जन्मोत्सव की हार्दिक बधाईयाँ ,
वैसे आप में से कुछ ने तो भगवान के कुछ न कुछ गुणों को अपनी कीमती जिंदगी में उतारा है ,चाहे वो भगवान शंकर से  "मदिरा पान"  हो या भगवान कृष्णा से  " रास लीला "का
                            ऐसे ही आगे के जीवन में भी उनकी  नेक शिक्षावों को भी अपने जीवन में भी उतारने का प्रयत्न करें।  इसी आशा के साथ एक बार पुनः बधाईयाँ एवं ढेरों शुभ कामनाएँ। 
खता इतनी कहाँ होगी
जो तुम बदनाम करती हो
अभी जब इश्क में हारें हैं
तब गुमनाम करती हो

हो तुम मगरूर इतना जो
कभी तो बाज भी आओ
कभी ऐसे किसी दिल में
तमन्ना मत जगा जाओ

नहीं तो फिर खताएँ क्या
वफायें भी नहीं होंगीं
ये पतझड़ बीत जाएगा
हमारे प्यार का सावन
कभी न  लौट पायेगा

अगर हम जिद नहीं करते
तो ज़िम्मेदार तुम होती
अभी तक तुम किसी
आशिक के दिल की वार तब होती

हमारे हाँथों  की लकीरें भी
 बेकरार सी बनकर
तेरा ही  इंतज़ार करती हैं
खुद से ही तकरार करतीं हैं

हे प्रभु
अब तो आओं न
अब तुम देर लगाओ न
माताएं अब तड़प रहीं हैं
बहनों  को तडपाओ न
हे प्रभु अब तो आओ न

जनम की तेरी आस लगाये
अखियाँ सुनी हुई जा रहीं
कंस बने सब रक्षक जग में
चोली ,चुनरी चढ़ी जा रहीं
विपदा आन खाड़ी माथे पर
तुम ही दूर भगाओ न
हे प्रभु
अब तो आओ न

छोड़ के अपनी नगरी को
दिल की नगरी में समाओ न
भक्तों को दरस दिखा के प्रभु
गीता का सार सुनाओ न 
हे प्रभु अब तो आओ न

मुझे प्यार क्यूँ हो जाता ??
हर उन तमाम लफ़्ज़ों से
जिनको कोई सुनना  भी
पसंद नहीं करता क्यूंकि
कवी का खून हूँ मैं

उबल जाता हूँ
हर उस समस्या पर
जिसका निदान भी
निकलना
नामुमकिन है
मैं क्यूँ कवी का
ही खून हूँ

काश !!!
मैं किसी नेता के रगों
में दौड़ता
कभी भी मुझमे
कमी नहीं होती
किसी विटामिन की

जो वो अक्सर
लेता रहता है
गरीबों के खून से,
तरह तरह के वादों को
पीने का भी अनुभव होता
झूठ ,फरेब और धोखे की
नयी दुनिया में जीने
का मज़ा ही
कुछ और होता

काश!!
काश !!
मैं कवी का खून न होता


Monday 26 August 2013

मैं,
नाम शायद
भूलता हूँ
पर समर्पण
एक सबका

था  नया अंदाज़ अपना
थी  नयी पहचान ये
झूम के आयी घड़ी वो 
याद कितनी दे गई

नाज़ है तुम पर सपूतों
लेखनी को आज अब
मंच ऐसा ये दिया जो
नित करे नए काज तब

कितने भी किरदार रहें हों
कितने भी युग बदल गयें हों
हर किरदार को आज मिलाया
हर युग को भी आज दिखाया

यही तो अपना है लिट्रेचर
यही तो करता है  लिट्रेचर 
इन्सान के सीने में इंसानियत बची है
जम्हॊरित के रिश्तों पे तभी तो ख़ुशी है
आवाम चाहती है खुशबु ही हो फिज़ा में
आखिर क़दम बढ़ा क्या तेरा है इस दिशा में

कुछ कम करो अब वादे कर्तव्य को दिखावो
नेता चुने गए हो इस धर्म को निभावो
कुछ है ख्याल तुमको कितनों के हो पुजारी
तुम राष्ट्र हित को समझो
औ राष्ट्र हित निभाओ 
हमको नहीं है भाती दिलोंजान की बातें
आओ करें मिल के झंडू बाम की बातें 
मुझे तेरी निगाहों  ने
ये कैसा जाम दे डाला
फ़लक तक ना पहुँच पाए
पिए गुमनाम हर प्याला

यही मदहोश करती है
निगाहें आरज़ू की
इस  ज़ुरूरत को
कभी खामोश करती है
कभी इलज़ाम लाती  है
कभी गुमशुम कली बनकर
ये कत्लेआम ढाती है

Sunday 25 August 2013

ऐसा मेरा तब हाल ना था ये दिल यूँ ही बेहाल न था
मैं अब शायर हूँ तब कवि था लेकिन ऐसे तब भी  फटेहाल न था

इश्क के कानून ने मुजरिम बना दिया है
दर्द कुछ भी नहीं फिर भी दवा दिया है 

Saturday 24 August 2013

                                                                      सीख 


ये उम्र के तकाजे समझ की है दुनिया
जो गलती हुई तो सिखाने की दुनिया
लड़कपन तो छोड़ो जरा अब संभल जा
है अपना न आगे यहीं  बस ठहर जा 

                                                     नहीं  कोई  साथी   तू ही सब सहेगा 
                                                     है हिम्मत जो बन्दे तो मेहनत  किये जा 
                                                     लगा अब  प्रयर्थक  प्रयासों को अपने 
                                                      अगर पुरे करने हो जीवन के सपने 

अगर पूरे करने हो जीवन के सपने 
तो राहों की मुश्किल से लड़ना पड़ेगा 
अँधेरा घना  है अभी मंजिलों पे 
इर्रादों को आगे ना ढलना पड़ेगा 
                                                
                                                        तू मंजिल में बिखरे इन काँटों से डर  मत
                                                         यही तुझको पीछे फिसलने न देंगें
                                                        अगर राह इतनी कठिन भी न होगी 
                                                         तो तनिक भी मज़ा जीत का आयेगा न

अगर तुझको जीवन की कलियाँ हैं  चुनना 
 तो कांटों की शैय्या पे चलना पड़ेगा 
नहीं कुछ भरोसा है  पगडंडियों का 
प्रलय शक्ति में भी तो अड़ना पड़ेगा 
                                                        
                                                            अभी भी संभल जा बहुत कुछ बचा है     
                                                             समय मार से अब ना आगे बचेगा 
                                                             तू संशय में न जी हटा दे हया  को 
                                                              नहीं बाद तेरा  निशां न बचेगा     

                                                      
                                                    

Friday 23 August 2013

ये अपने कॉलेज की लाइफ
ये अपने कॉलेज की लाइफ

दोस्तों के संग कॉलेज जाना
बीच सफ़र में हंसी उड़ाना
हंसी उड़ना  हंसी उड़ाना
रूठ गए जो उन्हें मनाना

कॉलेज में टीचर बन जाना
बँकिंग क्लासेज खूब चलाना
रोज़ नए नित देना बहाना
फिर बच्चों का हमें सताना

C.T. में चीटिंग करवाना
चीटिंग से चैटिंग का बहाना
ले के उसकी नज़र में आना
नज़रों से जब नज़र मिली तब

फिर न पूछो क्या हो जाना
दोस्तों का फिर ख़्वाब दिखाना
उन ख्वाबों में फिर जी पाना
मुश्किल कितना था मर जानां

शुरू हुआ दिन भागम भागी
टेंशन ही बस है जो आती
कभी कहीं हम कुछ भूल आये
कभी कहीं से कुछ ले आये

उसकी फाइल इसकी कॉपी
उसकी पेन ने इसकी  नापी
यूँ  होती फिर नई शुरुवात
मस्ती होती अपनी बात

हर एग्जाम के बाद जो जीना
मस्ती में फिर खुल के पीना
आँखों से कुछ भी जो निकले
उन निकले ख्वाबों में जीना

कितना कुछ है कहने को
है अब भी इच्छा रहने  को
कितना भी हम सफ़ल हो  जायें
याद  में  तो  कॉलेज दिन आयें

ऐसी लाइफ कहाँ मिलेगी
ऐसे साथी कहाँ मिलेंगें
बस केवल यादें रह जानी
आँसू की  नदियाँ बह जानी


 दुखियारी माँ की व्यथा सुनो 
कुछ सीखो बच्चों पाठ भी लो 
कलियुग के बढ़ते अधरम में 
माता फरियाद लगाती है 
पीड़ा जब बहके धार हुई 
प्रभु को आवाज़ लगाती है 

क्या दष मेरा क्यूँ दोषी हूँ 
भगवन मैं न निर्दोषी  हूँ 
है दिल मेरा ममता मेरी  
मैं  ही समाज में दोषी क्यूँ 

तारा जिसने अबलाओं को 
जब मुक्त किया हर बलाओं को 
अब मैं  दुखियारी हूँ सुनके 
मेरे दुःख का भी निदान करो 
भगवन मुझ पे अहसान करो 

हैं पुत्र मेरे ऐसे सारे 
जग में हैं न वो कहीं प्यारे
नित दिन नव कृत्य वा काम करें 
ममता मेरी बदनाम करें 

गौ की धरती को जलील करें 
दिल्ली के दिल को तार करें 
अपनी हर ओछी हरकत से 
ये सर्मसार हर बार करें 
 
भगवन ऐसा अब मत देना 
चाहे  कुल बेटा मत देना  
चाहे तुम  देना एक  कन्या 
कर देगी जो जीवन धन्या 

भगवन मेरी सुन लो पुकार
जुडवा दो अब जीवन के तार  
अब चाहे तुम ही आ जाओ 
माँ की ममता को जिलवाओ 

मैं हूँ दासी तेरे दर की 
मुझपे इतना अहसान करो 
अपने दर्शन की वरुणा से 
अब मेरा भी कल्याण करो 

Thursday 22 August 2013

मुझे तो खवाब में भी गलतियाँ दस्तूर न करना 
अजी जब प्यार है तुमसे तो फ़िर मगरूर क्या रहना 
इल्ज्ज़ामे जुल्म तो हम हर वख्त दीदार करते हैं 
हमें गुरुर है की हम तेरे  अस्ख से  भी  प्यार करते हैं 
कुछ लोग कहीं बस यादों में
न जाने कैसे बस जाते
रिश्तों के नाज़ुक बंधन को
वादों की नाव डुबा आते
कुछ लोग कहीं बस यादों
में न जाने कैसे बस  जाते

बंधन इतना नाज़ुक है क्यूँ
जब चाहे कोई तोड़ चले
वो ऐसे क्यूँ बहता रहता 
जब चाहे कोई मोड़ चले

क्या रिश्तों की दीवार कभी
मटमैली न हो पायेगी ??
जो दूरी  इतनी है दरमियाँ
वो कभी सिमट न आयेंगीं 

बस "कुछ " लोगों ने ही रिश्तों
की खिल्ली खूब उड़ाई है
न जाने रहता है दिल क्या
चेहरे पे सिकन न आयी है

मैं  कहता हूँ समझाता हूँ
उन सब को अब बतलाता हूँ 
ये रिश्ते हैं खैरात नहीं
जब चाहे जी में तोड़  चले
ये बंधन हैं उन राहों का
जिनपे तुम हमको छोड़ चले

इन राहों में गठबंधन से ही
राह सरल हो पायेगा 
इतना तेरा है जो गुमान
तू फिर से लौट के आयेगा 
अक्सर गर्ल्स को ये प्रॉब्लम रहती है की  सारे बॉयज एक जैसे होते हैं
मैं कहता हूँ की  "सबों को क्यूँ आजमाते हो "

जो तुम्हारे जैसे हैं उनके पास क्यूँ नहीं जाते ???

सो हम सब के लिए

ज़रा गौर फरमाईयेगा। .

"किसी के इश्क पे इतना कभी एतबार क्या करना ?
किनारे हैं समुंदर के तो फिर तैयार क्या करना ??
पता है जब मुझे तेरी हयाओं पे ही मिटना है
तो किसी और पत्थर की मूरत से फिर झूठा प्यार क्या करना  "
कुछ अरमानो  को जीने की
चाहत है थोड़ा पीने की
गम के दुःख को सुख के आसूं
ख्हाबों की दुनिया जीने की



इस प्यार के महकते गुलशन में
हम दो जिस्मों से एक जाँ हो जाएं
जी करता तेरे आंचल में
मुह पोंछ के फिर से फरा हो जाएँ 

Wednesday 21 August 2013

ये दूरियाँ बढ़ती चली अब फांसले मिटते नहीं
यह सोच के इस ऒर से हर एक कदम छोटे पड़े
हम जोड़ लें हर बात को फिर से मिले जज़्बात यूँ
फिर से चलें सबके कदम मिलके हमेशा साथ  यूँ

सबमे यही हममें सही कुछ बात ही अच्छी मगर
इस बात से क्या मोल है इस प्रश्न से क्या तॊल है
जो साथ में न मिल सके जो प्रश्न से न खिल सके
जो हर घड़ी बदला करे जो है जहाँ झगड़ा करे

अब है बचा न वक़्त ज्यों बहता है अब भी रक्त यूँ
बस देखने में ही हमेशा साथ यूँ चलना  नहीं
जब है दिलों में सिलवटें तब साथ यूँ रहना नहीं

यह कुछ समय की बात है जैसे अँधेरी रात है
यह जान लें यह मान लें अच्छे मनुज पहचान लें
हर एक ख़ुशी इज़हार कर हर बात न तकरार कर 
अब भी समय है विचार कर न तोल  कर
न मोल कर बस दोस्तों से प्यार कर 
ले  कर  के आशाएं  निकले थे घर से हम 
बचपन से कॉलेज में पढने  की इच्छा थी 
घर वालों को भी इसी समय  की प्रतीक्षा थी 
बेटा  मेरा नाम करे जग में कुछ काम करे 

जीवन के पहलू को यूँ ना बदनाम करे 
पर हम्मे थी कुछ आशा हम्मे थी कुछ इच्छा 
कॉलेज जाने की हमको भी थी परतिक्षा 

मेरे कुछ सपने हैं  मेरे जो अपने हैं  
मेरे उन सपनों को पूरा तो होना है 
उनको अब सेना है 
उनको अब माला में मोती सा पिरेना है 

यही मेरी आशा है 
यही मेरी इच्छा है 
मेरे इसी पल को 
मुझे समय से प्रतीक्षा है 
जय हनुमान

हे रामदूत
हे महाबली
हे ज्ञान वान
हे तेजवान

हे  बाल  ब्रम्हचारी निधान
अतुलित बल है जो तुम्हारी खान
कुछ दया करो कुछ कृपा करो
हे रामदूत ,हे महाबली
कुछ दया करो कुछ कृपा करो

हम बालक  हममे नादानी
हम बहते हैं  जैसे पानी
हम निष्ठा तुम पे करते हैं
पर करते थोड़ी मनमानी

तुम  दया करो तुम कृपा करो
कुछ ज्ञान बढे कुछ ध्यान बढे
हम आगे बढ़ते रहें सदा
सद्बुद्धि दो हमें विद्दया दो
इसी क्षण से यही प्रतिज्ञा दो

जीवन का कुछ उददेश बने
पाने की उसको ललक जगे
तेरा दरस करूँ तेरा ध्यान धरूँ
तुझ में निष्ठा विश्वास करूँ
कुछ दया करो कुछ कृपा करो

 गुरु

चलो बन्दे गुरु की शरण धीरे धीरे
चलो बन्दे गुरु की शरण धीरे धीरे

तुम अर्पण करो अपना मन धीरे धीरे
तुम अर्पण करो अपना तन धीरे धीरे
चलो बन्दे गुरु की शरण धीरे धीरे

उन्हीं की शरण में
उन्ही के चरण में
ये जीवन लुटा दो
ये भ्रम सब हटा दो

समर्पण करो तुम बचन धीरे धीरे
चलो बन्दे गुरु की शरण धीरे धीरे

ये रिश्ते ये नाते सदा टूट जाते
न इनपे रखो भ्रम न इनपे करो श्रम
करो अपना जीवन  उन्ही के हवाले
वहीँ हमको तारें  वहीँ तो सवारें

वहीँ सारे जन्मों से जो हैं हमारे
समर्पण सभी अब उन्ही के हवाले
करो तुम सदा येवचन धीरे धीरे
चलो बन्दे गुरु की शरण धीरे धीरे

वे सृष्टी के ज्ञाता वे भाग्य विधाता
उन्ही से है आशा उन्ही की जिज्ञासा
लिए हम चले तब वरण धीरे धीरे
चलो बन्दे गुरु की शरण धीरे धीरे


हे  माता
आपसे जोड़ना है हमको अपना नाता।  हे माता

हम बालक अज्ञानी हैं निस दिन नई कहानी है
जीवन है या पानी है नहीं  समझ ही आता  हे माता।

इच्छा है अपने जन से ,इस विचरण मन के  प्रण से
तेरा सुमिरन हर कण से ,मैं ध्यान धरूँ ,मैं भजन करूँ
तुझे पाने की बस ज़तन करूँ

हे शुभ्रज्योत्स्ना माता
हे माता 
कुछ और कभी भी कहो न कहो
अब  लफ़्ज़ों से बस हाँ कह दो
मिट जाएगें   दस्तूर सभी
मन में बैठे जो  पीर कभी

बातें भी फिर हो जायेंगीं
रातें वैसे ही गायेंगीं
फिर वैसे ही मिलना होगा
अरमानों को खिलना होगा

हम फिर तेरी मुस्कानों पे
 घायल वैसे  हो जायेंगें
फिर सारे नाजों नखरों को
हम और भी ख़ुशी उठायेंगें

अब हाँ कह दो
बस हाँ कह दो
अब हाँ की कुछ
कीमत चाहो  तो
और कहीं तुम ना कह दो
लेकिन बस अब
केवल हाँ कह दो 
रातें तो तनहा कभी न होतीं
अगर सोच में भी इशारा जो होता
दिलों की ये धड़कन बढ़ी भी न होती
अगर तेरा कुछ तो सहारा जो होता

मुक्कद्दर की बातें कभी भी न करते
अगर ये मुक्कद्दर हमारा जो होता
वहीँ पे  ख़त्म दिल की हर आरज़ू थी
अगर यही  दिल तो हमारा जो होता


मुझको कुछ
लिखना न आता
माँ तेरा जो साथ न भाता

तेरी  बुद्धि
तेरी  वाणी
तेरी  श्रद्धा
तू ही ज्ञानी

बस मैं माँ
एक सहारा हूँ
तेरी भक्ति का प्यारा हूँ
कदम कदम पे
तुझको ध्याऊँ
तेरी भक्ति
का गुण
पाऊँ

मैं
हरदम
बस भजता
जाऊँ
ये
माँ
तुझसे
ही वर पाऊँ

जीवन
तेरी
शरण में बीते
बल, बुधि ,विद्या से ही प्रीते
हरदम ऐसा मैं गुण पाऊँ
तेरे स्नेह से सदा नहाऊँ

Tuesday 20 August 2013

कुछ.
दिल से
निकालें ज़रूर
पर दिलवाले भी तो चाहिए
कद्र देने  के लिए
कहीं कदरदान
भी तो पाइए

ये दुनिया है
मेरे दोस्त
कीमत के बदले ही
कीमत की जाती
मुफ्त के दानी  भी
खैराती ही कहलातें

खून पसीने की कमाही पे
भी  दुसरे ही  हक़ जताते
राम ,रहीम ,नानक,पैगम्बर
के ज्ञान को अपने ढंग से फैलाते

दुनियां में बस कद की इच्छा
ले कर आए जीने वाले
खद तो भूलें हैं जग अपना
कुछ भुलवाते पीने वाले

वो भूल गए इतना भी सब
जीना आखिर तो क्यूँ  जीना ??
आखिर मकसद तो एक वही
औ एक ही वही  हमारा है

फैला जो हर दिन द्वेश नया
उसको ये कुछ न प्यारा है
पर भुल गयें क्यूँ आज सभी
उसने ही सब का ध्यान रखा

जीने की हर दिन दी इच्छा
कितना हर पल स्नेह दिया
ये धर्म नहीं है अलग कहीं
बस राहें अलग  हैं पाने की

 हम जीवों को उस ईश्वर से
ये नई दिशा है  मिलाने की
 खोला है उसने पथ अनेक
 अपने में लगन लगाने की

मिलने के लिए उस ईश्वर से
तब दिल से ही आवाज़ करो
वो ही है जो पहचानेगा
वो ही जो तुमको मानेगा





कविताएँ लाइक करने की
इतनी अच्छी आदत सबकी
मैं उनको शीश झुकता हूँ
क्या दुवा करूँ रब से उनकी
बस इतना ही दोहराता हूँ
कि उन सब की फेसबुक खुलते ही
वायरस का ऐसा जाल मिले 
मैट्रिक्स भी उनसे शर्म खाए 
हैकर्स  की चाँदी जाए 

कुछ ऐसा उनको नाल मिले








त्योहार है
रक्षा का पर
क्या हम कर पायेंगें ???

सवाल बड़ा
सीधा है
जवाब भी टेंढा नहीं

पर दे तो कौन
बहस करें तो सब मौन
ये व्रत का समय नही है
पुकार है उन सब अबलाओं की
जो असहाय थीं समय पे
आज भी हम सब से
असहाय ना हो जायें कहीं

गर हर भाई अपने बहनों
की तरह दूसरे की भी
इज़्ज़त करना सीख ले
इससे बढ़ कर कोई तोहफ़ा
किसी बहन के लिए नही होगा
औ रक्षा बंधन की भी सार्थकता भी
सही मायनों में सिद्ध हो पाएगी 

Monday 19 August 2013

जिंदगी 
हंसने गाने 
खुशियाँ मनाने
का त्योहार है
गम हैं हर पल
यहाँ पे क्यूंकि
अपनों से तकरार है

इस तकरार की
कीमत झेलतें
सब यार हैं
फिर दुःख
द्व्वेश ,कष्ट
और नफ़रत
की बहार है

क्यूँ नही समझतें हैं
वो कीमत सभी की
क्या मिला है
आज तक इतिहास
में भी  झाँक लो

मुल्क दुसरे ही
जो हमको लड़ाए हैं
आपसी रंजिश का
वही  फ़ायदा उठाएँ हैं

और
.......हम.......
दिल के तराजू पे
दिलवालों को तॊल के
इन्सान्यियत को
आज भी
नापाक करते आएँ हैं  
सभी  नवयुवकों(आशिकों ) को यह  सूचित किया जाता है की
आगामी दो दिन में किसी भी अनजान
खूबसूरत  कन्या से कोई भी उपहार स्वीकार न करें
            "" यह राखी हो सकती है ""



                                               नवयुवक हित में जारी

Sunday 18 August 2013

कुछ तो कमी शायद  कहीं
दिल में रही होगी
तभी तो वो नहीं आयी
उसकी यादें आई है 
महफिले गुलजार की बातों में न आइएगा
ये ज़माने से मुर्रौवत छीन लेतें हैं
इनके खवाबों में कभी मत जाइएगा
ये अपनों की खुशियाँ भी समेट लेतें है

इन्हें परवाह केवल खव्वाब हैं
औ उन्हें पाने की ललक
पर भूल गए ये
कुछ पाने के लिए
कुछ होना तो चाहिए

मुक़ाम कितने भी
हांसिल हो जाएं
शोहरत कितने भी
ये पा जाएँ  पर दर्द
बाँटने के लिए
किसी के दिल में
एक कोना  तो चाहिए 

Saturday 17 August 2013

साथी अभी तो बहुत मुस्कुराना
अभी भी बचा है बहुत सा ठिकाना
ये नज़रें जो तेरी जरा झुक गईं तो
बहुत ही कठिन सा लगेगा ज़माना
साथी अभी तो बहुत मुस्कुराना

हुआ जो न तेरी वफाओं का साथी
वो आगे नहीं हो सकेगा किसी का
किसी के भी आंचल की परछाहियों को
वो शामिल नहीं कर सकेगा उसी सा 

ये मौसम  ,फिसाएं कभी कम न होंगीं
तनिक मिल गया जो तुझे तेरा ताना
तुझे तो अभी भी बहुत साथ देंगें
तुझे तो अभी भी बहुत दूर जाता
साथी अभी तो बहुत मुस्कुराना






मेरी कलम
वो क्यूँ  लिखती है
जो दुनिया के ढंग न भाए 
अगर वो लिखती दुनियादारी 
तब सब पढने क्यूँ ललचाए 
मेरी कलम …

ये कलम का
आखिर दोष नहीं
तो दोषी कहाँ छिपा होगा ??
इन बढ़ती जंजीरों के पीछे कोई
अपराधी क्या होगा ??

ये मान  चुके
आखिर हैं सब
बस राज़ छुपाना
जान गए
डरते हैं सब
बस कहने से
चुप रहने का ही  ठान  गए

आखिर कब तक चल पायेगा
आखिर वो समय कब आयेगा
जब सब अपनी जिम्मेदारी को
कन्धों के  भार उठाएगा

ये भी खुद ही करना होगा
आखिर कब तक  तर्कायेगा
ये सोच के कोई आयेगा
वो  चमत्कार  दिखलायेगा

इस आशा से टलना होगा
इस कलम के पैने  धारे को
ही धारण अब  करना होगा
उत्थान अगर अपना चाहो
तब खुद ही खुद बढ़ना होगा 

Friday 16 August 2013

इन् आँखों की मस्ती को  छूने से पहले
तेरे दिल में अपनी जगह चाहता हूँ
अगर कुछ खताएं तनिक जिंदगी की
तो जिंदगी भी तुझपे कुर्बां चाहता हूँ 
क्यूँ तुमको भरोसा मेरी कश्तियों पे
किनारे अभी भी बहुत  नाव होंगें
अभी तक जो यादों के फेरे लगें हैं
अभी तो बचे और भी छाँव होंगें 
तेरे दीवाने महफ़िल में
कोई पैमाना लायेंगें
इश्क की बात आयेगी तो
सभी दीवाना गायेंगे

मोह्हबत का कोई
कैसे कहीं
कुछ नाम तो होगा
अगर ये सोंच लें
सब तो
कोई बदनाम न होगा 
जिसको आँखों में बसाया  वो सुनहरी थी

हिम्मत  जुटा के पास गया  तो

दिखती छरहरी थी

दिल ने इज़हार किया

घुटनों पे बैठ जरा

हांथों को फैलाया था

दर्द अब बढ़ा था

जब रिस्पोंस कोई न पाया  था

झल्ला के जब उसके

 चश्में को हटाया था


हाय डर के

तब भागा

समझ अब कुछ आया था

बेचारी अंधी थी

जिससे इजहारे मोह्हबत

की दहलीज़ लाँघ आया था


आज कल के चीटियों पे
भी फेसबुक  की खुमारी  है

लैपटॉप खोलते ही
चढ़ने  की,
की तयारी है

मैंने बोला
तू कहाँ चली

वो बोली -
मत टोक अभी पगले
पहले मेरी तू  गल सुन ले
फिर  मेरी  फोटो खींच एक
fb पे उसको टांग जरा
मैं  हुई अभी एकदम वेल्ली
बॉयफ्रेंड से ब्रेकअप पाया है

अब तक सुनती आई उसकी
अब मेको गुस्सा आया है
दिखला दूंगी है दम कितना
बस हुई अभी हूँ  छत्तीस की

 उडती खबर ही  पाया है
न ही झंझट ,न ही  जुगाड़
फेसबुक का आप्शन आया है
बस सारी  महिमा फोटो की
जिसने भी ढंग से लगाया है

अब नया बॉयफ्रेंड  लाऊंगी
फेसबुक को जब अपनाऊंगी
उसके जैसे कितनों को अब
मैं ऊँगली पर ही नचाऊँगी

फेसबुक की महिमा है अनंत
मैं  और चीटियों को बताउंगी





मशक्कत मुक्कमिल हुई है अगर तो
 ये सब तेरे  ही  रहमतों का करम है
नहीं गर्दिशें भी तो काबिल नहीं थीं  
मिली आज इतनी  हमें जो ख़ुशी है

इसी नाव के अब  बनो तुम खेवैया 
यहाँ सिर्फ फैला भरम ही भरम है
तूफां बहुत है शिकारी खड़े हैं
नहीं दिख  रहा है कहीं भी किनारा
तुम्हारे सिवा अब कोई आस है न
नहीं कोई बचता हुआ भी है सहारा  

तेरे तेवर मनाने  में
सुबह से शाम हो गई 
जिसे मैं  कल तलक
आँखों की गहराइयों में 
समेटने में  लगा रहा 
आज पता चला वो



मास्टर जी के ही साथ 
फरार हो गई 

Wednesday 14 August 2013

प्याज की बढती कीमतों के परिणाम  स्वरूप 
प्रेमी -प्रेमिका की तीखी नोंक झोंक के रूप में प्रस्तुत हास्य

हमेशा की  शिकायत को
अभी गुमनाम करता हूँ 
तुम्हें अनमोल तोहफा दूँ 
तो लेकिन क्या ???
कुछ इंतज़ाम करता हूँ 

चलो अब दे दिया 
पा तुम जिसे 
आंसू बाहोगी 

अभी जो  दिख 
रही है ये 
सभी शामों ,शहर 
तो कुछ  नहीं  चिंता 
बदलते  वक़्त के ही  साथ 
फिर म्य्सियम में पाओगी  

आता  जो कभी शेलाब  था 
चाकू  लगाने पर 
वो आयेगा
नहीं दिन दूर 
बस बाजार  जाने पर 


तिरंगे की नयी खुशुबू नया अहसास लायेंगें
छा दुनिया के उच्च शिखर पे फिर  इतिहास बनायेंगें
जो  छुरे शांति के धोखे से हमपे आ रहें हैं
बता दो आज उनसे हम उन्ही
शेखर ,भगत, बिश्मिल को फिर से ला रहें हैं

हमारे शांति पथ के मार्ग को बाजी न तुम  जानो
लुटाते  जान जो हंस कर ,उड़ाना धड़ भी हम जानें
हमें है प्यार इस धरती से बिलकुल माँ के ही जैसा
कफन हम बांध के सर पे सदा तैयार रहते हैं

वतन के  आरज़ू  जीना
वतन के आरजू मरना
लहू की आखिरी बूँ भी
वतन पे ही  फ़ना करना

जय भारत ,जय मातृभूमि

इसको इतना फैलावो की उन्में दहसत भर जाये
जिनके मनसूबे अभी भी नापाक हैं  
 तिरंगे  की  नयी   खुशबु  नया अहसास लायेंगें
इस दुनिया के शिखर पे हम नया इतिहास लायेंगें
जो छुरे शांति के धोखे से अब आजमां  रहें हैं
बता दो आज उनसे हम उन्ही
शेखर ,भगत ,बिश्मिल को फिर से ला  रहें हैं

ये तोहफे ज़िन्दगी के हैं ज़माने की जरुरत पे
इन्हें तुम बेरुखी से यूँ न आजमाना
हैं माना शोखियाँ  तेरी, कहीं लाखों से कम नहीं
पर इन तोहफों की कीमत क्या किसी बाज़ार में होगी ???

Tuesday 13 August 2013

कहीं कोई न दिन ऐसा कहीं कोई न शाँ होगी
कहीं हम इश्क में बागी बने कहीं हमसे  बगाँ होगी

समय की चोट है  कितनी कोई कैसे  बताएगा
जो डूबेगा तू दरिया में तभी तो पर पायेगा



मोहब्बत तो इर्रादों की नई तस्वीर  बन जाती
किसी का साथ हो इतना कहीं की पीर बन जाती
किसी के  जश्न में शामिल हुए तो प्यार फिर आया
कहीं का प्यार न पाया तो ये जंजीर बन जाती

किसी चिलमन के आँचल से
बहारें हम ना देखेंगे
किसी बाहों के धागों से
वो झूले हम ना झूलेंगें
हमें तो हर घड़ी है साज़
उन जैसे अफसाने  का
हमें तो आज भी नाज़
उन जैसा  दीवाने का  
अगर दुःख दर्द  न होता
 तो हम मशगूल ही रहते
किसी की याद  न  आती
कहीं के शूल न रहते
ये दर्दे इन्तेहाई का
फ़कत इलज़ाम ले डाला
किसी के प्यार में पड़कर
कहीं  का जाम ले  डाला

तेरे होने का कुछ एहसास
तेरे दर से आता है
तेरे होने का कुछ एहसास
तेरे दर से आता है
तेरे चाहत के आँसू को
नदी सा बन बहाता है

कहीं राहों की उलझन मे
उलझ के फस ना जाना तुम
ये मंज़िल दूर जाती है
ये मेहनत आज़माती है
नया इतिहास गाती है 

Monday 12 August 2013

तुम ही तुम
हर जगह क्यूँ
नज़र आ रही
तुमने ठेका लिया क्या ??
चमन के लिए 
रहिमन पढाई छोड़ के बाकी सब कुछ होए 
जब पढने की बारी आवे तब किताब ले सोए 

दिन भर हम यह सोचा करते 
 अब बहुत हुआ !! बस !!! 
आगे कुछ न गवाऊंगा 
कितना भी हो मुश्किल इसमें 
                                                           
                                            फेसबुक के बाद निपटाऊंगा 
                                           ऑनलाइन होके  एक बार
                                           चेक करने की आती  इच्छा  
                                           फिर ना जाने टाइम कैसे, कितना 

किस तरह भागता जाता है 
न नींद भी आती  उस पल है 
मन भी पर  निपट के आता  है

                                           पर फिर सोचा उद्देश्य है क्या 
                                           पढने का ध्येया तो कुछ होगा 
                                           घरवालों की छोटी इच्छा 
                                           बेटा पढ़ के कुछ काम करे 

कुछ नाम करे जग में मेरा 
अपने  भविष्या की ध्यान धरे 
जब ध्यान में आया ये सब तो 
खुश हुआ मैं अपनी माया पे 

                                               सोचा मैं करता काम सही 
                                               फेसबुक देगा इनाम यही 
                                               पुरे जग का बस एक श्रोत 
                                               जाने सब हो के ऒत प्रोत 
 
हर पल  करता है नाम नया 
चाहे कैसा भी काम गया 
कोई भी कैसी भी हो शंका 
हर पल बजता इसका डंका 
                                                     बस काम तो कर दूँ कुछ ऐसा 
                                                     जिसका कोई कुछ प्रूफ तो हो 
                                                     जीता जागता सबूत दे दूँ 
                                                     की  नाम  है तेरा  जग में  पा 
  हम  बाद कभी जब भी  सोचें 
  तब कुछ ख्याल क्या आयेगा 
  रोटी का क्या????
  सब ही लाते 
  पर रोटी वाली लायेंगें 

                                           फेसबुक पे कीमती  टाइम को 
                                           रोटीवाली की खोज में बितायेंगें 



कभी तन्हाइयों के राज़ को
फ़ुर्सत से बाँटों तो हमे भी
बेरूख़ी का कुछ
तज़ुर्बा तो नया होगा  
"ऐ दिल ठहर जा ज़रा फिर मुहब्बत करने चला है तू "
  तब दिल  बोला  - बस ...!!!
 अब बहुत हुआ उपदेश तेरा
 इससे मैं तो  बदनाम हुआ
सारे नुस्खे मेरे कंधे
तेरा ही तेरा नाम हुआ

                                                               ज़माने की हर खूबसूरत काली
                                                                मैने पत्थर रक्खा जब इधर वो चली
                                                                तुमको क्या है पता कितना दुख है भरा
                                                                 जान कर आज ये सारी कलियाँ
                                                                     तो अब  सूखती  ही चलीं

मैंने बोला -
अभी क्यूँ तू घबराता है
याद तुझको जो तेरा समय आता है
नयी कलियाँ हैं फिर तो खिलेंगीं अभी
फूल मुरझायेंगें  जब खिलेंगीं तभी
है यही रीति जग मे सदा के लिए
मिटती हस्ती है अपनी वफ़ा के लिए

ज़िंदगी गम के बादल को
अंधेरों मे छिपाती है
किसी के चाह की आदत बनी 
खामोशी भी सह  जाती है
यही बस साज़ रह जाता
उसी उल्फ़त मे जीने को
नया अंदाज़ बन पाता
नए  गम रोज़  पीने को


वर्षा तेरी   बूंदों में अमृत सा रस ही पा जायें
अपनाये जो तुझको  जीवन में,मुश्किल में भी वो मुस्काएं
जो थोडा तेरा स्वार्थ कहीं बाहर तुझको न लाता है
इस दुनिया के सब सुख दुःख  में अपना संगीत बजता है
                                                                 
                                                                           वो पल न याद है अब मुझको
                                                                           जब तुमने कदम बढाया था
                                                                           उन कलास्सों में उन गलियों में
                                                                           तुमसे जब मै टकराया था

अनुभव हैं  कुछ खट्टे मीठे
चाहत के अरमां जीने को
आशा रहती दुनिया भर के
खुशियों के जमघट पीने को

                                                                 कुछ समय जरा रीकाल करें
                                                                 जब हम सब देलही आये थे
                                                                 अंधों में काना राजा बन
                                                                 फिर किस्से खूब सुनाये थे
रहती तुम जिसके साथ जभी
वो लालपरी की छाया थी
वो तो सीधी साधी गुडिया जैसी
बाकि यामी  की सब माया थी

                                                                           वो समय हमारा कैसा था
                                                                            जब राज छुपाये जाते थे
                                                                            दिल में कैसे भी दर्द रहें
                                                                            फिर भी मुस्काए जाते थे

फिर युग बदला मौसम बदला
तकरार जुबां तक आई थी
रहते थे तुम सब साथ मगर
तन्हाई भी दस्तक पाई थी

                                                                   फिर कैसे किसका कौन हुआ
                                                                   उन बातों  पे सब मौन हुआ
                                                                   कोई गढ़ में कोई डेल्ही
                                                                   कोई तब जीवन व्यस्त हुआ

तूने साधा नित कर्म नया
जब बारी तेरी आयी थी
खुशियों की सब चाभी
तेरे द्वारे  जब छाई थी
                                                                 खुशियों की चाभी को देखा 
                                                                 तब जाग रही दूजी इच्छा

                                                                  घर वाल्लों को तेरे  जीवन साथी
                                                                 की  खोज  की थी तब  परतीछा

मन तेरा निर्मल चंचल सा
एक भंवरे पे जो अटक गया
वो बेवकूफ बुद्धू बन के
किस इच्छा पे था सटक गया

                                                          फिर क्या क्या थे पापड़ बेले
                                                          हम क्या क्या ढंग सिखलाये थे
                                                          पर तुम तो कीट पतंगा बन
                                                          बस लौ से ही टकराए थे

क्या दुःख  झेले क्या कस्ट दिया 
निर्मल था आघात किया
विश्वास उठा के इश्वर से
भवरें से आस की बारी थी

                                                           पर भूली तू ये जीवन है
                                                           है कष्ट यहाँ पे हर मन में
                                                           कोई कैसे क्यूँ हर लेगा
                                                           भारी मन को शीतल देगा

कर आस सदा उस इश्वर से
वो है मन न बहलायेगा
लाखों प्राणी तेरे जैसे
वो सब को पार लगाएगा
                                             
                                                             बस एक ही इच्छा मन रख कर
                                                             संपूर्ण समर्पण कर देना
                                                              हो कितना भी दुःख  जीवन में
                                                              सब उसको अर्पण कर देना

पर कुछ बातें तुम याद रखो
एक सीख सदा लो हर गल से
बस अब जो बीतें कुछ पल हैं
उनको अब ना तुम साथ रखो




                                                            होगा कितना   सुंदर जीवन
                                                             मन में  शांति बस जाएगी
                                                             जब अर्पण करके प्रभु को तुम
                                                             नित ध्यान उन्ही को ध्याएगी



कभी तन्हाइयों को दिल के
दामन मे छुपा कर के
बहुत से जख्म हमने
आरजू के नाम कर डाला
वो आदत प्यार ना करने की
फिर भी ना बदल पाए
औ हमने हर पलक जलते हुए भी
प्यार कर डाला 

Sunday 11 August 2013

आँखे कह रही हैं क्या 
इसकी पहचान चाहिए 
ज़िंदगी जीने के लिए 
क्या धरती, क्या आसमान चाहिए
खुदा के नूर पे भी आज ऐतबार ना रहा 
कह दो उनसे की 
उनकी साए से भी अब प्यार ना रहा
तमन्ना है अगर तेरी मुझे बदनाम करने की
तो हाज़िर जाँ भी तेरे नूर पे कुर्बान कर जाऊँ
ये तेरी जुस्तुजू ने किस कदर महफ़िल जमा डाला
जुड़ा जो नाम तेरे साथ तो मुश्किल बना डाला 
आँखो के समुन्द्र को आईना बना के
दिल के तूफान को  ज़माने से  बचा के
किस्मत की बाजी जो  हमने थी हारी
जीता हुआ दिल भी गुमनाम कर दिया
उनकी वफ़ा का इनाम कुछ  दिया


Saturday 10 August 2013

कभी तन्हाइयों मे सोच के
क्यूँ दिल करें छ्होटा
जब मौसम वक़्त के  नसाज़
पल को ही मिटा देगा

Friday 9 August 2013


तलाश नए लड़के की 

आज कल के ज़माने में
नौउवा आश्चर्य आता है
शादी के सीजन आए तो
पप्पू फिर सर्माता है
                              इस बार नई सी फरमाइश
                              ले कर आये लड़की वाले
                              हमको दिलवाओ ऐसा वर
                              जो पान ,पुकार न खाता हो
                              न करता हो मदिरा सेवन
                              धुवां न कभी उडाता हो
मैंने बोला तुम सटक गए
इसमें तुम फिर से अटक गए
जो और बची कोई इच्छा हो
उसको भी करो बयां जरा
वे बोले ;
हाँ ,मै  कुछ भुला था 
बातों में मै भी झुला था
                                  लड़का तो हो सात्विक कुल से
                                  हर सुबह शाम ले राम नाम
                                   जीवन को सफल बनता हो
                                   शाकाहारी ही खाता  हो
 मैंने माथे की भृकुटी को
 आँखों तक खीच चढ़ाया था
 गुस्से में आंखे लाल किये
 मै  थोडा फिर सकुचाया था
                                       फिर तब जवाब की बारी  थी 
                                       कानों ने की तयारी थी
                                       पंडित तुमको ऐसा लड़का
                                       I.C.U. में मिल जायेगा
                                       तुम तुरत अभी ही खुद खिसको
                                      कोई तो नज़र ही  आयेगा