मेरी कलम
वो क्यूँ लिखती है
वो क्यूँ लिखती है
जो दुनिया के ढंग न भाए
अगर वो लिखती दुनियादारी
तब सब पढने क्यूँ ललचाए
मेरी कलम …
ये कलम का
आखिर दोष नहीं
तो दोषी कहाँ छिपा होगा ??
इन बढ़ती जंजीरों के पीछे कोई
अपराधी क्या होगा ??
ये मान चुके
आखिर हैं सब
बस राज़ छुपाना
जान गए
डरते हैं सब
बस कहने से
चुप रहने का ही ठान गए
आखिर कब तक चल पायेगा
आखिर वो समय कब आयेगा
जब सब अपनी जिम्मेदारी को
कन्धों के भार उठाएगा
ये भी खुद ही करना होगा
आखिर कब तक तर्कायेगा
ये सोच के कोई आयेगा
वो चमत्कार दिखलायेगा
इस आशा से टलना होगा
इस कलम के पैने धारे को
ही धारण अब करना होगा
उत्थान अगर अपना चाहो
तब खुद ही खुद बढ़ना होगा
ये कलम का
आखिर दोष नहीं
तो दोषी कहाँ छिपा होगा ??
इन बढ़ती जंजीरों के पीछे कोई
अपराधी क्या होगा ??
ये मान चुके
आखिर हैं सब
बस राज़ छुपाना
जान गए
डरते हैं सब
बस कहने से
चुप रहने का ही ठान गए
आखिर कब तक चल पायेगा
आखिर वो समय कब आयेगा
जब सब अपनी जिम्मेदारी को
कन्धों के भार उठाएगा
ये भी खुद ही करना होगा
आखिर कब तक तर्कायेगा
ये सोच के कोई आयेगा
वो चमत्कार दिखलायेगा
इस आशा से टलना होगा
इस कलम के पैने धारे को
ही धारण अब करना होगा
उत्थान अगर अपना चाहो
तब खुद ही खुद बढ़ना होगा
No comments:
Post a Comment