Saturday 25 January 2014

हर पीर फ़कीर इलाही से 
आरज़ू चमन की चाह नहीं 
बस चाह सदा हर खवाबों से 
इस वतन के आगे राह नहीं 
वंदे मातरम जय भारत 
जय हिन्दोस्तान ..
मुझे हक़ तो नहीं है तहक़ीक़ात का
पर भरोसा कैसे पाऊँ आज़ादी कि सौग़ात का
जहाँ हम  आज़  भी पराधीन हैं विवसता की ज़ंज़ीरों में
हम  दुबके रहते हैं अपने अपने पीरों में
जहाँ में आज भी खुशियाँ
वतन के शान में चर्चे
दिखावे हो गए हैं
हमारे देश के नेता
दिलाते प्यार की कसमें
छलावे हो गए हैं

सलामी औ मंच से ये बात हो नहीं सकती
अब आदर्शों के इस राष्ट्र  को
विचारों की कमी खलती है
झूठें वादों से ,अनेक इर्रादों से
इनकी जड़ें हिलतीं हैं
उपदेश से अच्छा तो
उद्देश् होना चाहिए
इस गणतंत्र दिवस पे
ऐसा भेष होना चाहिए 

Tuesday 21 January 2014


अगर मायूस हो खुद से
तो थोड़ी गुफ़तगू कर लो
मोह्हबत में सितमगर
ही मुलाकातें बढ़ाते हैं
निशाँ अपनी कहानी का
वो अक्सर छोड़ जाते हैं
वफ़ा की आरज़ू करलो 
तो सपनें टूट जाते हैं
जो तुम मायूस हो खुद से 
तो अपने रूठ जाते हैं
इसी छोटी से दुनिया की
बड़ी लम्बी कहानी है
कोई समझे तो सागर है
नहीं बारिश का पानी है

Thursday 16 January 2014

इस ज़िंदगी में मौला
हसरत  ही खो गई है
खुद ही पता नहीं है
बेनाम हो गई है 

Sunday 5 January 2014

हे ईश्वर
ऐसा क्यूँ होता है
कोई भरोसा क्यूँ खोता है

क्यूँ परवाह नहीं होती है
उसको चाह नहीं होती है
ऐसे नाते अब मत देना
ऐसे ही रिश्ते क्यूँ जग में

ऐसे जीवन के अंधियारे
ऐसे सपनों से बेचारे
मुझसे अब तो दूर हटा दो

मैं सच्चा हूँ सब रिस्तों में
मैं कच्चा हूँ हर डोरी में
ऐसी मर्यादा के अब बंधन
से आज़ादी ही दिलवा दो

दुःख होता है आशाओं से
सपनों कि सौगंध सजाये
मैं ही हर रिश्ते ढोता हूँ

दुःख होता जब इस बन्धन से
दिल ही दिल में मैं रोता हूँ
ऐसे रिश्ते न मिल पायें
ऐसे दर्द सहे जाएँ
हे प्रभु तुम ही तार करा दो
ऐसे रिश्तों से उजियार करा दो 

Friday 3 January 2014

नए तरंगों को छूने को 
अब तेरा आग़ाज़ हुआ है 
स्वागत तेरा आज हुआ है 

नए साल का नया शोर है 
बीता कल जैसे कठोर है 
समय मांग है फिर छा जाना 
नए साल तुम ऐसे आना 

कुछ उम्मीदें हैं अब तुमसे 
उन सपनों में पंख लगाना 
नए साल तुम ऐसे आना
दिल मेरा यूँ ही घबराए
कोई गुज़ारिश न हो पाये
दुःख के आँसू सब दे जाते
इन पलकों को कौन हंसाए