Monday 30 September 2013

बुजुर्गों की दुवाएं भी दवा सा काम करती हैं ,
पीढियों की बर्रकत को ही कुछ इंसाफ समझतीं हैं 
समझतीं हैं वो कल को ,चेताती  हैं, वे कल से
निगाहें हों भले  कमजोर पर, आईना दिखातीं हैं
बुजुर्गों की दुवाएं ही ,हमें चलना सिखातीं हैं 

Saturday 28 September 2013

चाहत नही होती तो खुदा के पास ना जाते ,
बिछड़ते नही लोग तो इतने याद ना आते...
ये तो दुवाऊं का ही असर है ,की रहमतें बरकरार  हैं..
वरना आज कल कहाँ आसानी से मिलता इतना सच्चा यार हैं ..
ए ज़िंदगी !!
क्या पता है तुझे ?
मैं तेरे बिना आज भी
उदास बना फिरता हूँ

गुज़रता हूँ उन गलियों से
पर मुस्कुराता नही
सोने की कोशिश तो बहुत की
पर और कोई ख़्वाब आता नही ..

ए ज़िंदगी ..
तेरा चेहरा हसीन ज़रूर है
मगर गुमराह हूँ ,तेरी अदाओं से
पूछता हूँ मैं गलियों से ,
रास्ते कहाँ हैं ??
ए ज़िंदगी ...

Thursday 26 September 2013

अर्ज़  किया है. . . . . . . . 

दिल की आदतें जब लल्लन टॉप हैं  . . . .
दिल की आदतें जब लल्लन टॉप हैं . . .. . . . . 

फिर चुप चाप बैठे क्यूँ हम क्यूँ आप हैं ??? 


कुछ तो तूफानी करते हैन…… … :)
 

Sunday 22 September 2013

मुक्कदर मैं तेरी कश्ती का एक सहारा बन गया हूँ
चलाते नाव दरिया में ,मैं  एक  किनारा बन गया हूँ
अजी हम आज भी कहते ,तेरी  दुश्वारियाँ  जायज़ नहीं
मुक्कमल  हो  नहीं अच्छा तो मैं गंवारा बन गया हूँ 

Saturday 21 September 2013

बदलती शाम है फिर से ये महफ़िल रंग  लाती है
दिलों को साथ ही ले कर  नया पैगाम गाती है
कभी कुछ बात न हो तो ,इरादे ही कहाँ पाओ
अगर इल्जाम ही न हो तो तुम इतिहास क्या दोहराओ 

Wednesday 18 September 2013

मन बसेरा है , जीवन लुटेरा है
फेरों की दुनिया है ,चलता सवेरा है
प्रकाश तो दीखता मगर दुखता अँधेरा है
पहचान न पाए जिसे ,वो आज जो मेरा है
इसीलिए कहतें हैं ,जीवन लुटेरा है 
मुश्किल सी दुनिया में 
मुश्किल सी बातें हैं ,
मुश्किल परछाही में 
मुश्किल मुलाकातें हैं ,

क्यूँ  न हम इस मुश्किलात को 
आसानी सा बनाएं ,
 दो चार कदम तुम बढ़ो  
दो  चार कदम हम भी बढाएं 
मन आज फिर उदास है ,
भावनाओं को व्यक्त करने की आस है
मन आज फिर उदास है

मैखाने की तलाश पूरी तो नहीं,
जीवन के पैमाने की आस है
मन आज. … फिर उदास है

कीमत पता है ,जाना कहाँ है
जानते हैं सब कुछ माना कहाँ हैं
बेबस हैं ,लाचार हैं ,
खोज है तो शामियाने की

बुनियाद तो झूठी नहीं ,
गुलाम क्यूँ हैं परिस्थितयों के
टूटे हुए मन से निराशा झलकती है
कुछ आशा तो बची है पर समाधान की तलाश है 
मन आज फिर उदास है ,मन आज फिर उदास है

मन अशांत हो कर दुनिया से ,
हम प्रभु को आवाज़ लगाते
दुखियारी दुविधा को समझो
पार तुम्हारी आस लगाते

मैला मन है जीवन मैला
हम दुखियों का तन भी मैला
पीड़ा अब जब पार हुई है
तब दुःख भंजन पार लगाओ

शक्ति ,बुद्धि ,विवेक जगाओ
मेरा भी अब भार उठाओ
मैं ,केवल ,मैं हो कर हारा
इस मैं को अब दूर भगाओ 

Monday 16 September 2013

बस अहसास ही रहा गया है मेरे दरम्यान  . . .
तेरे संग होने का ,तेरी बातों में खोने का ,
वो रातों को तेरी अठखेलियों में जागने का ,
तेरे हर एक गुस्ताखियों का बस . . .
अहसास ही रह गया है मेरे दरम्यान  . . .


Sunday 15 September 2013

मज़ा ही कुछ और है ,
अफवाहों के बाज़ारों को गर्म करने का ,
झूठी बातों को फैलाने का
मज़ा ही कुछ और है

समझ से परे हैं  ,
वो बातें उपज कहाँ की होती थीं ,
बस . . .  होतीं थीं ,
तो माहोलों को सजाने के लिए
महफिलों को ज़माने के लिए,
दोस्तों के संग खुशियाँ मनाने के  लिए

आज भी याद से रोमांचित हो जाना ,
समझ जब से थी पायी ,बस खुराफात ही सूझती थी
चाहे वो स्कूल के दिन रहें हों ,चाहे मोहल्ले की शामें ,
टीचर जी से लफड़ा कराना हो या मोह्हबत की मेहरबानी ,
मज़ा ही कुछ और था ,झूठी बातों को फैलाने का  . .

 आज अब समझ आया है ,वो लड़कपन की समझ थी ,
मज़ा था उन ख्यालों में ,जीते थे उन बवालों में
उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाने का नहीं था
बस लड़कपन की मस्ती थी ,जो कभी कभी सवाल बन जाती थी

कितनी सारी बातें  हैं कहने को ,समझने को ,सुनाने को
पर उस समय ये सब मात्र एक बहाना बन जाती थीं
डींगें मारने की ,धौंस जताने का सहारा बन जाती थीं
बातें तो आज भी वैसे ही रहीं हैं ,बस बदला तो ये वजूद है

मिटाने को कुछ बचा नहीं
याद रखने को बस ये सिलवटें हैं
जो  यादों की फेहरिस्तों को लम्बी करती चली गईं हैं

कुछ . . .
कहना था  तुमसे
पर डरता था  तेरी नाराज़गी से ,
घबराता  था हर उस शिकन से ,
जो तेरी  खूबसूरती को तार करती थी  ,
कुछ...कहना था तुमसे

मैं आज भी
सिहर उठता हूँ ,
हर उस अहसास से ,
जो मुझको तुझसे दूर ले जाते हैं
तेरे भावनाओं की कद्र ,करते करते
मैं खुद की कद्र भूल गया था
पहचान थी तो बस . . .
 तेरे आहट की ,

तेरी खुशबु ,उन वादियों में
ऐसी सुगंध भर देती थी ,
हर कोई मदहोश सा फिरता था

कुछ जरुर कहना था तुझसे
पर. .  कह न पाया ,
शर्मिंदगी को सह न पाया
शायद ,आज ये दिल ,
इतना उदास न होता ,
जो आज के  वक़्त में
तेरे साथ मैं  होता ,

खुद से कभी ये शिकवा न होता ,
खुद से कभी भी शिकायत न होती
गर उस वक़्त इन  बातों को मैं तुझसे कह पता
तब कभी भी ये ग्लानि न रहती ,कि ,
कुछ
तो जरुर कहना था तुझसे   . .
कुछ तो जरुर कहना था तुझसे 
कुछ  बातें कही नहीं जाती,ये ज़ज्बात  समझने के होते हैं
कुछ पल फिर नहीं आते ,ये बस यादों में  फेरे से बस जाते हैं
ये जोड़ी क्या पता ,कब तलक  ,चल पायेगी ,हंसाएगी या रुलाएगी।
पर ये ज़रूर है पता ,जब भी दूर जाएगी ,तब एक दुसरे को नहीं हंसा पायेगी
  

Tuesday 10 September 2013

मैं हूँ परचाहियों में तुम दूर कहाँ जाओगे
अपने ख्यालों में हरदम मुझे पाओगे
ये सिलसिले गुस्तःखियाँ कब तलक चल पायेंगीं
इरादों के आगे फिर आ के ठहर जाओगे 

Monday 9 September 2013

चिर अपरिचित प्राण प्यारा
यह गलत इलज़ाम कैसा ?
आदमी को ठग  रहा है
आदमी का नाम कैसा ??
गलतियाँ नहीं करना ये जिंदगी नहीं है
लेकिन गलतियों में रह जाना ये भी
जिंदगी नहीं है
तो आखिर ज़िन्दगी है क्या??

जिंदगी हँसने ,गाने ,खुशियाँ मनाने का त्यौहार है
गम है हरपल यहाँ पे क्यूंकि अपनों में तकरार है 

Sunday 8 September 2013

ये चमक फीकी नही है ,रौशनी धुंधली लगे ,
आज के तसबीर में यह चाँदनी सी खिलगई
क्यों ना हो जब एक खिलता सा सितारा
खुद ब खुद मदहोश हो
आवारगी को चार
करने चल पड़ा है

Saturday 7 September 2013

ये अरमान अपने बदलते रहेंगें
उड़ानों में अपनी दिखाएंगें हँसरत
सितारों से कह दो जमीं को न देखें
अभी हमने डेरा  ज़माया हुआ है



Thursday 5 September 2013

एक बार स्वर्ग में तीन इंजीनीयर्स की जरुरत पड़ी ,कोषाध्यक्ष ने दूतों को बोला जाओ धरती से ले आओ।
दूत चले तो उपर से उनको चीन की दीवाल बनते हुए दिखी ,दूत वहीं [पहुँच गए ,एक वहीँ से ले लिया ,फिर सोचे और कहाँ कहाँ खोजूँ पड़ोस देश इण्डिया & पाकिस्तान से भी एक एक ले लिया ,सब स्वर्ग पहुँचे

कोषाध्यक्ष ने पूछा  पाकिस्तान कितने में बनेगा ये मचान ?,वो बोला साहब दे दो केवल  ९ हज़ारा ,कोशा बोले -कैसे क्यूँ कुछ विवरण दो ?? तीन हज़ार लगे लेबर में ,तीन हज़ार लगे समाना औ तीन हज़ार अपना मेहताना

कोशा मुड़े चीन पर -बोले हून जिन ताऊ ,कितना लगाऊँ ??
साहब दे दो तैतीस ,जिसमे से जन्शंख्या भारा व्यय के साथ सामान तुम्हारा ,११ x ३ का लगा दो न्यारा ,

तब कोशा इण्डिया पर आए ,बोलो बच्चा अपना उपाय ,तब इण्डिया ने दिया नया सुझाव ,लगेगा केवल उनतीस हज़ार ,जिसमे से दस तू रख यार ,

फिर दस मई भी लेता हूँ
बचा कितना ??
नौ
पाकिस्तानी को ठेका देता हूँ  
ये ज़िंदगी का फलसफा है
राहों से मुसाफिरों की पहचान नहीं होती
ये तो तज़ुर्बा बताता है की




शॉर्टकट कहाँ है !!!!!
मैं भूल न पाया दिन अपने
जब गुल्ली डंडा खेले थे
मास्टर की छड़ियों ने
भी तब  सीखें दीं अलबेले थे

दादी अम्मा के हाँथों की
वो सुबह कलेवे का खाना
उन ठंडी ठंडी रातों का
चौपालों में हंसकर जाना

वो क्लास लगाना टीचर से
प्रेयर में पक्का सो जाना
जब टिफ़िन की बारी आये तब
चलते लेक्चर में निपटाना

वो अंग्रेजी में जीरो को
हर बार नया सा ले आना
नंबर ज्यादा न आने पर
हर बार नया ही  हर्जाना

मुर्गा बनना ,डंडे खाना
अब हर दिन का ही किस्सा था
प्रेयर के जैसे वो भी तो
मेरे रूटीन का हिस्सा था

वो मैच में बोलिंग पे झगड़ा
फिर कंचे की हेरा फेरी
तब दंगल की नौबत आना
मेरे घर जाने से पहले
उस रोज़ शिकायत का जाना

प्रॉमिस हरदम पहले वाली
अब आइयिन्दा न जाउँगा
न गिल्ली डंडें  खेलूँगा
न कंचों को हाँथ लगाऊंगा

बातें करना फ़िल्मों वाली
घर आ के खाना फिर गाली
नखरे अपने हीरो जैसे
चाहे ही रहें हों  ब-वाली

किस्से हर रोज़ पुराने थे
अपने बचपन अनजाने थे

बस यादों का ही फेर बचा
अब ये आतीं मनमानी हैं
उस जीवन के घटना क्रम
की अब वो ही बची कहानी हैं
अब वो  ही बची निशानी है





जुगुनू के प्रकाश से रौशन किया जग को
इतनी उर्जा ,इतनी शक्ति कहाँ से आयी
बिन गुरु कृपा नहीं यह संभव ,धन्य हैं गुरु
धन्य हैं परम्पराएं ,दिलों में जीवंत रहें
 भावनाएँ बढ़ते रहें ,प्रकाश फैलाते रहें,
गुरु ज्ञान पाएँ हम हर पल
गुरु चरणों में अर्पण हर धन


Wednesday 4 September 2013

ज्ञान की तराजू का मोल नहीं होता है
शिष्यों से गुरुजन का तोल नहीं होता है
यूँ तो द्रोणा की पाठशाला में धनुर्धर तो बहुत थे
पर हर कोई अर्जुन की तरह अनमोल नहीं होता है

गुरुवर का प्रेम ही महान किया अर्जुन को
रास्ते  के  कांटे से बहाल किया अर्जुन को।,
दानी तो बहुत  सुने  इतिहास ने बखाना है
पर हर कोई एकलव्य सा अनमोल नहीं होता है 
गुरु वर से ज्ञान मिले
गुरुजन को मान मिलें
शिष्यों से गुरुजन को
हरदम ही सम्मान मिले
तभी
वृद्धि होगी ,शांति होगी
जीवन में सफलता का
नया सबेरा आयेगा
सब को हर्षायेगा
मधुरं मधुरं ही गाएगा



Tuesday 3 September 2013

मन मैला है आशाओं से
इच्छाओं के बंधन ने फिर
रिश्तों की डोरी तोड़ी है

यूँ कब तक चल पायेगा ही
जब बुनियादों में संशय है
यहाँ कथन सभी के मिथ्या हैं
औ करनी का तो पता नहीं
बस अहम् को लेकर बढे चले

अहम् ही  कारण होता है
सभ्यताओं के मिटने का
संस्कृतयों के सर्वनाश का
 औ जीवों के पतन का

तो फिर क्यूँ हम इससे जकड़े हुए हैं
इसमें पड़कर हरदम अकड़े हुए हैं
ज्ञान नहीं  है  अहंकार का
फिर भी ज्ञानी बने विचरते हैं


मुह्हबत की राहों में ,कहीं टूट न जाना
ये रास्ते टेढ़े बहुत ,पगडण्डीयों में जान  न
यहाँ हर कदम पे शोर है, यहाँ बात बात में जोर है
मिलता तो केवल  गम है औ उस गम की  कुछ पहचान  न 
 उसकी यादों से सफर को हम सजा के चल दिए हैं
हमसफर का न ठिकाना ,हम सफर पे चल दिए हैं 
उसकी यादों से सफ़र को हम सजा के चल दिए है 

कोशिशें कितनी किये पर याद ही ये साथ आयी 
शुक्र करते हैं उसी को दी नहीं कुछ भी तन्हाई 
अब ये उलझन है नहीं हम की अकेले चल दिए हैं 
उसकी यादों के सफर को हम सजा के चल दिए हैं 

साथ रहते तो भला क्या ग़म हमें उसका सताता 
दूर हैं फिर भी वहीँ दिल ,जान ही हर पल बताता 
इस फ़कत एहसास की साजिश से पहले चल दिए हैं 
उसकी यादों के सफर को हम सजा के चल दिएँ हैं 
हर स्थिति में ढलना सीखो
हर मुश्किल से लड़ना सीखो
क़ाबलियत नहीं भी तुममे
फिर भी आगे बढ़ना सीखो

हालातें बदल जाते  हैं
इरादों की मजबूती पे
बस ज़ज्बां  हो
कर गुजरने का 

Sunday 1 September 2013

ये दीप जलाया  न मैंने
चिंगारी पहले ही फूटी
हमने तो इन्ही हवाओं का
बस रुख थोडा सा मोड़ा है
क्यूँ हारते हो ज़माने से ये
तुम्हारी  नाकाम याबियों
का जश्न मनाते हैं

हँसते हैं सहानुभूति के
पीछे हर उस दौर पर
जहाँ असफ़लता ने
तेरा दामन चूमा था

दिखाना आज इनको
मंजिलें मेरी भी हैं
बस समय की मार ने
ही रास्ते भटका दिए थे