मन मैला है आशाओं से
इच्छाओं के बंधन ने फिर
रिश्तों की डोरी तोड़ी है
यूँ कब तक चल पायेगा ही
जब बुनियादों में संशय है
यहाँ कथन सभी के मिथ्या हैं
औ करनी का तो पता नहीं
बस अहम् को लेकर बढे चले
अहम् ही कारण होता है
सभ्यताओं के मिटने का
संस्कृतयों के सर्वनाश का
औ जीवों के पतन का
तो फिर क्यूँ हम इससे जकड़े हुए हैं
इसमें पड़कर हरदम अकड़े हुए हैं
ज्ञान नहीं है अहंकार का
फिर भी ज्ञानी बने विचरते हैं
इच्छाओं के बंधन ने फिर
रिश्तों की डोरी तोड़ी है
यूँ कब तक चल पायेगा ही
जब बुनियादों में संशय है
यहाँ कथन सभी के मिथ्या हैं
औ करनी का तो पता नहीं
बस अहम् को लेकर बढे चले
अहम् ही कारण होता है
सभ्यताओं के मिटने का
संस्कृतयों के सर्वनाश का
औ जीवों के पतन का
तो फिर क्यूँ हम इससे जकड़े हुए हैं
इसमें पड़कर हरदम अकड़े हुए हैं
ज्ञान नहीं है अहंकार का
फिर भी ज्ञानी बने विचरते हैं
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