उसकी यादों से सफर को हम सजा के चल दिए हैं
हमसफर का न ठिकाना ,हम सफर पे चल दिए हैं
उसकी यादों से सफ़र को हम सजा के चल दिए है
कोशिशें कितनी किये पर याद ही ये साथ आयी
शुक्र करते हैं उसी को दी नहीं कुछ भी तन्हाई
अब ये उलझन है नहीं हम की अकेले चल दिए हैं
उसकी यादों के सफर को हम सजा के चल दिए हैं
साथ रहते तो भला क्या ग़म हमें उसका सताता
दूर हैं फिर भी वहीँ दिल ,जान ही हर पल बताता
इस फ़कत एहसास की साजिश से पहले चल दिए हैं
उसकी यादों के सफर को हम सजा के चल दिएँ हैं
No comments:
Post a Comment