मुक्कदर मैं तेरी कश्ती का एक सहारा बन गया हूँ
चलाते नाव दरिया में ,मैं एक किनारा बन गया हूँ
अजी हम आज भी कहते ,तेरी दुश्वारियाँ जायज़ नहीं
मुक्कमल हो नहीं अच्छा तो मैं गंवारा बन गया हूँ
चलाते नाव दरिया में ,मैं एक किनारा बन गया हूँ
अजी हम आज भी कहते ,तेरी दुश्वारियाँ जायज़ नहीं
मुक्कमल हो नहीं अच्छा तो मैं गंवारा बन गया हूँ
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