क्यूँ हारते हो ज़माने से ये
तुम्हारी नाकाम याबियों
का जश्न मनाते हैं
हँसते हैं सहानुभूति के
पीछे हर उस दौर पर
जहाँ असफ़लता ने
तेरा दामन चूमा था
दिखाना आज इनको
मंजिलें मेरी भी हैं
बस समय की मार ने
ही रास्ते भटका दिए थे
तुम्हारी नाकाम याबियों
का जश्न मनाते हैं
हँसते हैं सहानुभूति के
पीछे हर उस दौर पर
जहाँ असफ़लता ने
तेरा दामन चूमा था
दिखाना आज इनको
मंजिलें मेरी भी हैं
बस समय की मार ने
ही रास्ते भटका दिए थे
No comments:
Post a Comment