Sunday 15 September 2013

कुछ . . .
कहना था  तुमसे
पर डरता था  तेरी नाराज़गी से ,
घबराता  था हर उस शिकन से ,
जो तेरी  खूबसूरती को तार करती थी  ,
कुछ...कहना था तुमसे

मैं आज भी
सिहर उठता हूँ ,
हर उस अहसास से ,
जो मुझको तुझसे दूर ले जाते हैं
तेरे भावनाओं की कद्र ,करते करते
मैं खुद की कद्र भूल गया था
पहचान थी तो बस . . .
 तेरे आहट की ,

तेरी खुशबु ,उन वादियों में
ऐसी सुगंध भर देती थी ,
हर कोई मदहोश सा फिरता था

कुछ जरुर कहना था तुझसे
पर. .  कह न पाया ,
शर्मिंदगी को सह न पाया
शायद ,आज ये दिल ,
इतना उदास न होता ,
जो आज के  वक़्त में
तेरे साथ मैं  होता ,

खुद से कभी ये शिकवा न होता ,
खुद से कभी भी शिकायत न होती
गर उस वक़्त इन  बातों को मैं तुझसे कह पता
तब कभी भी ये ग्लानि न रहती ,कि ,
कुछ
तो जरुर कहना था तुझसे   . .
कुछ तो जरुर कहना था तुझसे 

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