बदलती शाम है फिर से ये महफ़िल रंग लाती है
दिलों को साथ ही ले कर नया पैगाम गाती है
कभी कुछ बात न हो तो ,इरादे ही कहाँ पाओ
अगर इल्जाम ही न हो तो तुम इतिहास क्या दोहराओ
दिलों को साथ ही ले कर नया पैगाम गाती है
कभी कुछ बात न हो तो ,इरादे ही कहाँ पाओ
अगर इल्जाम ही न हो तो तुम इतिहास क्या दोहराओ
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