Sunday 5 January 2014

हे ईश्वर
ऐसा क्यूँ होता है
कोई भरोसा क्यूँ खोता है

क्यूँ परवाह नहीं होती है
उसको चाह नहीं होती है
ऐसे नाते अब मत देना
ऐसे ही रिश्ते क्यूँ जग में

ऐसे जीवन के अंधियारे
ऐसे सपनों से बेचारे
मुझसे अब तो दूर हटा दो

मैं सच्चा हूँ सब रिस्तों में
मैं कच्चा हूँ हर डोरी में
ऐसी मर्यादा के अब बंधन
से आज़ादी ही दिलवा दो

दुःख होता है आशाओं से
सपनों कि सौगंध सजाये
मैं ही हर रिश्ते ढोता हूँ

दुःख होता जब इस बन्धन से
दिल ही दिल में मैं रोता हूँ
ऐसे रिश्ते न मिल पायें
ऐसे दर्द सहे जाएँ
हे प्रभु तुम ही तार करा दो
ऐसे रिश्तों से उजियार करा दो 

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