मुझे तेरी निगाहों ने
ये कैसा जाम दे डाला
फ़लक तक ना पहुँच पाए
पिए गुमनाम हर प्याला
यही मदहोश करती है
निगाहें आरज़ू की
इस ज़ुरूरत को
कभी खामोश करती है
कभी इलज़ाम लाती है
कभी गुमशुम कली बनकर
ये कत्लेआम ढाती है
ये कैसा जाम दे डाला
फ़लक तक ना पहुँच पाए
पिए गुमनाम हर प्याला
यही मदहोश करती है
निगाहें आरज़ू की
इस ज़ुरूरत को
कभी खामोश करती है
कभी इलज़ाम लाती है
कभी गुमशुम कली बनकर
ये कत्लेआम ढाती है
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