ज़िंदगी गम के बादल को
अंधेरों मे छिपाती है
किसी के चाह की आदत बनी
खामोशी भी सह जाती है
यही बस साज़ रह जाता
उसी उल्फ़त मे जीने को
नया अंदाज़ बन पाता
नए गम रोज़ पीने को
अंधेरों मे छिपाती है
किसी के चाह की आदत बनी
खामोशी भी सह जाती है
यही बस साज़ रह जाता
उसी उल्फ़त मे जीने को
नया अंदाज़ बन पाता
नए गम रोज़ पीने को
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