रहिमन पढाई छोड़ के बाकी सब कुछ होए
जब पढने की बारी आवे तब किताब ले सोए
दिन भर हम यह सोचा करते
अब बहुत हुआ !! बस !!!
आगे कुछ न गवाऊंगा
कितना भी हो मुश्किल इसमें
फेसबुक के बाद निपटाऊंगा
ऑनलाइन होके एक बार
चेक करने की आती इच्छा
फिर ना जाने टाइम कैसे, कितना
किस तरह भागता जाता है
न नींद भी आती उस पल है
मन भी पर निपट के आता है
पर फिर सोचा उद्देश्य है क्या
पढने का ध्येया तो कुछ होगा
घरवालों की छोटी इच्छा
बेटा पढ़ के कुछ काम करे
कुछ नाम करे जग में मेरा
अपने भविष्या की ध्यान धरे
जब ध्यान में आया ये सब तो
खुश हुआ मैं अपनी माया पे
सोचा मैं करता काम सही
फेसबुक देगा इनाम यही
पुरे जग का बस एक श्रोत
जाने सब हो के ऒत प्रोत
हर पल करता है नाम नया
चाहे कैसा भी काम गया
कोई भी कैसी भी हो शंका
हर पल बजता इसका डंका
बस काम तो कर दूँ कुछ ऐसा
जिसका कोई कुछ प्रूफ तो हो
जीता जागता सबूत दे दूँ
की नाम है तेरा जग में पा
हम बाद कभी जब भी सोचें
तब कुछ ख्याल क्या आयेगा
रोटी का क्या????
सब ही लाते
सब ही लाते
पर रोटी वाली लायेंगें
फेसबुक पे कीमती टाइम को
रोटीवाली की खोज में बितायेंगें
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