Wednesday 21 August 2013

ले  कर  के आशाएं  निकले थे घर से हम 
बचपन से कॉलेज में पढने  की इच्छा थी 
घर वालों को भी इसी समय  की प्रतीक्षा थी 
बेटा  मेरा नाम करे जग में कुछ काम करे 

जीवन के पहलू को यूँ ना बदनाम करे 
पर हम्मे थी कुछ आशा हम्मे थी कुछ इच्छा 
कॉलेज जाने की हमको भी थी परतिक्षा 

मेरे कुछ सपने हैं  मेरे जो अपने हैं  
मेरे उन सपनों को पूरा तो होना है 
उनको अब सेना है 
उनको अब माला में मोती सा पिरेना है 

यही मेरी आशा है 
यही मेरी इच्छा है 
मेरे इसी पल को 
मुझे समय से प्रतीक्षा है 

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