तुम ये जो लिख रहे हो
ज़ुल्मों की दास्तानें
कितने भी लफ्ज़ लिख दो
बदलें नहीं ज़माने
हैं आज भी यहाँ पर
सरगोशियों का साया
करता है ज़ुल्म कोई
इल्ज़ाम कोई पाया
ये वक़्त की नसीबी
कुछ टाल क्या सकेगी
बेवक्त जब बलाएं
आतीं रहीं नईं हैं
ज़ुल्मों की दास्तानें
कितने भी लफ्ज़ लिख दो
बदलें नहीं ज़माने
हैं आज भी यहाँ पर
सरगोशियों का साया
करता है ज़ुल्म कोई
इल्ज़ाम कोई पाया
ये वक़्त की नसीबी
कुछ टाल क्या सकेगी
बेवक्त जब बलाएं
आतीं रहीं नईं हैं
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