वर्षा तेरी बूंदों में अमृत सा रस ही पा जायें
अपनाये जो तुझको जीवन में,मुश्किल में भी वो मुस्काएं
जो थोडा तेरा स्वार्थ कहीं बाहर तुझको न लाता है
इस दुनिया के सब सुख दुःख में अपना संगीत बजता है
वो पल न याद है अब मुझको
जब तुमने कदम बढाया था
उन कलास्सों में उन गलियों में
तुमसे जब मै टकराया था
अनुभव हैं कुछ खट्टे मीठे
चाहत के अरमां जीने को
आशा रहती दुनिया भर के
खुशियों के जमघट पीने को
कुछ समय जरा रीकाल करें
जब हम सब देलही आये थे
अंधों में काना राजा बन
फिर किस्से खूब सुनाये थे
रहती तुम जिसके साथ जभी
वो लालपरी की छाया थी
वो तो सीधी साधी गुडिया जैसी
बाकि यामी की सब माया थी
वो समय हमारा कैसा था
जब राज छुपाये जाते थे
दिल में कैसे भी दर्द रहें
फिर भी मुस्काए जाते थे
फिर युग बदला मौसम बदला
तकरार जुबां तक आई थी
रहते थे तुम सब साथ मगर
तन्हाई भी दस्तक पाई थी
फिर कैसे किसका कौन हुआ
उन बातों पे सब मौन हुआ
कोई गढ़ में कोई डेल्ही
कोई तब जीवन व्यस्त हुआ
तूने साधा नित कर्म नया
जब बारी तेरी आयी थी
खुशियों की सब चाभी
तेरे द्वारे जब छाई थी
खुशियों की चाभी को देखा
तब जाग रही दूजी इच्छा
घर वाल्लों को तेरे जीवन साथी
की खोज की थी तब परतीछा
मन तेरा निर्मल चंचल सा
एक भंवरे पे जो अटक गया
वो बेवकूफ बुद्धू बन के
किस इच्छा पे था सटक गया
फिर क्या क्या थे पापड़ बेले
हम क्या क्या ढंग सिखलाये थे
पर तुम तो कीट पतंगा बन
बस लौ से ही टकराए थे
क्या दुःख झेले क्या कस्ट दिया
निर्मल था आघात किया
विश्वास उठा के इश्वर से
भवरें से आस की बारी थी
पर भूली तू ये जीवन है
है कष्ट यहाँ पे हर मन में
कोई कैसे क्यूँ हर लेगा
भारी मन को शीतल देगा
कर आस सदा उस इश्वर से
वो है मन न बहलायेगा
लाखों प्राणी तेरे जैसे
वो सब को पार लगाएगा
बस एक ही इच्छा मन रख कर
संपूर्ण समर्पण कर देना
हो कितना भी दुःख जीवन में
सब उसको अर्पण कर देना
पर कुछ बातें तुम याद रखो
एक सीख सदा लो हर गल से
बस अब जो बीतें कुछ पल हैं
उनको अब ना तुम साथ रखो
होगा कितना सुंदर जीवन
मन में शांति बस जाएगी
जब अर्पण करके प्रभु को तुम
नित ध्यान उन्ही को ध्याएगी
अपनाये जो तुझको जीवन में,मुश्किल में भी वो मुस्काएं
जो थोडा तेरा स्वार्थ कहीं बाहर तुझको न लाता है
इस दुनिया के सब सुख दुःख में अपना संगीत बजता है
वो पल न याद है अब मुझको
जब तुमने कदम बढाया था
उन कलास्सों में उन गलियों में
तुमसे जब मै टकराया था
अनुभव हैं कुछ खट्टे मीठे
चाहत के अरमां जीने को
आशा रहती दुनिया भर के
खुशियों के जमघट पीने को
कुछ समय जरा रीकाल करें
जब हम सब देलही आये थे
अंधों में काना राजा बन
फिर किस्से खूब सुनाये थे
रहती तुम जिसके साथ जभी
वो लालपरी की छाया थी
वो तो सीधी साधी गुडिया जैसी
बाकि यामी की सब माया थी
वो समय हमारा कैसा था
जब राज छुपाये जाते थे
दिल में कैसे भी दर्द रहें
फिर भी मुस्काए जाते थे
फिर युग बदला मौसम बदला
तकरार जुबां तक आई थी
रहते थे तुम सब साथ मगर
तन्हाई भी दस्तक पाई थी
फिर कैसे किसका कौन हुआ
उन बातों पे सब मौन हुआ
कोई गढ़ में कोई डेल्ही
कोई तब जीवन व्यस्त हुआ
तूने साधा नित कर्म नया
जब बारी तेरी आयी थी
खुशियों की सब चाभी
तेरे द्वारे जब छाई थी
खुशियों की चाभी को देखा
तब जाग रही दूजी इच्छा
घर वाल्लों को तेरे जीवन साथी
की खोज की थी तब परतीछा
मन तेरा निर्मल चंचल सा
एक भंवरे पे जो अटक गया
वो बेवकूफ बुद्धू बन के
किस इच्छा पे था सटक गया
फिर क्या क्या थे पापड़ बेले
हम क्या क्या ढंग सिखलाये थे
पर तुम तो कीट पतंगा बन
बस लौ से ही टकराए थे
क्या दुःख झेले क्या कस्ट दिया
निर्मल था आघात किया
विश्वास उठा के इश्वर से
भवरें से आस की बारी थी
पर भूली तू ये जीवन है
है कष्ट यहाँ पे हर मन में
कोई कैसे क्यूँ हर लेगा
भारी मन को शीतल देगा
कर आस सदा उस इश्वर से
वो है मन न बहलायेगा
लाखों प्राणी तेरे जैसे
वो सब को पार लगाएगा
बस एक ही इच्छा मन रख कर
संपूर्ण समर्पण कर देना
हो कितना भी दुःख जीवन में
सब उसको अर्पण कर देना
पर कुछ बातें तुम याद रखो
एक सीख सदा लो हर गल से
बस अब जो बीतें कुछ पल हैं
उनको अब ना तुम साथ रखो
होगा कितना सुंदर जीवन
मन में शांति बस जाएगी
जब अर्पण करके प्रभु को तुम
नित ध्यान उन्ही को ध्याएगी
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