दुखियारी माँ की व्यथा सुनो
कुछ सीखो बच्चों पाठ भी लो
कलियुग के बढ़ते अधरम में
माता फरियाद लगाती है
पीड़ा जब बहके धार हुई
प्रभु को आवाज़ लगाती है
क्या दष मेरा क्यूँ दोषी हूँ
भगवन मैं न निर्दोषी हूँ
है दिल मेरा ममता मेरी
मैं ही समाज में दोषी क्यूँ
तारा जिसने अबलाओं को
जब मुक्त किया हर बलाओं को
अब मैं दुखियारी हूँ सुनके
मेरे दुःख का भी निदान करो
भगवन मुझ पे अहसान करो
हैं पुत्र मेरे ऐसे सारे
जग में हैं न वो कहीं प्यारे
नित दिन नव कृत्य वा काम करें
ममता मेरी बदनाम करें
गौ की धरती को जलील करें
दिल्ली के दिल को तार करें
अपनी हर ओछी हरकत से
ये सर्मसार हर बार करें
भगवन ऐसा अब मत देना
चाहे कुल बेटा मत देना
चाहे तुम देना एक कन्या
कर देगी जो जीवन धन्या
भगवन मेरी सुन लो पुकार
जुडवा दो अब जीवन के तार
अब चाहे तुम ही आ जाओ
माँ की ममता को जिलवाओ
मैं हूँ दासी तेरे दर की
मुझपे इतना अहसान करो
अपने दर्शन की वरुणा से
अब मेरा भी कल्याण करो
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