Friday 23 August 2013

 दुखियारी माँ की व्यथा सुनो 
कुछ सीखो बच्चों पाठ भी लो 
कलियुग के बढ़ते अधरम में 
माता फरियाद लगाती है 
पीड़ा जब बहके धार हुई 
प्रभु को आवाज़ लगाती है 

क्या दष मेरा क्यूँ दोषी हूँ 
भगवन मैं न निर्दोषी  हूँ 
है दिल मेरा ममता मेरी  
मैं  ही समाज में दोषी क्यूँ 

तारा जिसने अबलाओं को 
जब मुक्त किया हर बलाओं को 
अब मैं  दुखियारी हूँ सुनके 
मेरे दुःख का भी निदान करो 
भगवन मुझ पे अहसान करो 

हैं पुत्र मेरे ऐसे सारे 
जग में हैं न वो कहीं प्यारे
नित दिन नव कृत्य वा काम करें 
ममता मेरी बदनाम करें 

गौ की धरती को जलील करें 
दिल्ली के दिल को तार करें 
अपनी हर ओछी हरकत से 
ये सर्मसार हर बार करें 
 
भगवन ऐसा अब मत देना 
चाहे  कुल बेटा मत देना  
चाहे तुम  देना एक  कन्या 
कर देगी जो जीवन धन्या 

भगवन मेरी सुन लो पुकार
जुडवा दो अब जीवन के तार  
अब चाहे तुम ही आ जाओ 
माँ की ममता को जिलवाओ 

मैं हूँ दासी तेरे दर की 
मुझपे इतना अहसान करो 
अपने दर्शन की वरुणा से 
अब मेरा भी कल्याण करो 

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