Saturday 23 November 2013

प्यार तक जताया था ,आँखों से बताया था
फिर भी तुम नहीं माने ,मुझको ही रुलाया था

प्यार वाली पीड़ा कभी  जान नही  पाओगे
अपने हर ख्यालों से मुझको ही रुलाओगे

आखिर क्या कुसूर मेरा ,तुझको जो अपनाया था
अपने हर दामन का मैंने  राज भी बताया था

दूर तुमसे जाने का भी न ख्याल आया था
फिर भी तेरे अक्स  ने ही मुझको क्यूँ रुलाया था

प्रेम किया दर्द सहा , इस जहाँ का मर्ज़ सहा
सपनों तक को लाने में अब दर्द उभर ही आता है

इस पीड़ा को देख के मुझसे ,मेरा मन घबराता है
इस पीड़ा को देख के मुझसे ,मेरा मन घबराता है

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