Saturday 30 November 2013

यूँ ही गुजर गए थे दो पल
कुछ सपनों की ख्वाहिश में
दिल सबका आबाद ही रहा
बच्चों की फ़रमाइश में

हल्ला गुल्ली शोर शराबा
कितने रंग दिखाए थे
कितने ही मुस्काते चेहरे
उस महफिल में आये थे

पता नहीं कुछ होता क्या है
पता नहीं क्या हुआ जा रहा ?
बच्चे तो भोले भाले बन
हो अनजान से आये थे  

यही हुनर है ये  DRISTI है
यही समर्पण की  सृस्टि  है
जिसके  सपनों को साकार
आज किये हम सब मिल यार 

नए "जोश" ने ढंग दिखाया
जिसे  2K13 ले आया
ऐसे इच्छा सब दिखलाना
ऐसी DRISTI सब अपनाना

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