Monday 18 November 2013

मैं कविता तेरी पढता हूँ
कवियों के इस सम्मलेन में
मैं वही किताबें पढता हूँ
पत्नी तेरे हर बेलन में

जब राग रसाया  था मैंने
जब रूप नहीं श्रृंगार मिला
क्या क्या इच्छाएं लाया था
कैसी पत्नी  का  प्यार मिला

जो मिलना था वो मिला नहीं
जब खिलना था तब खिला नहीं
अब मिल के क्या कर पाना है
सारा जीवन पछताना है

हे भाग्यवान !! हे जड़वंता !!
हे गुण प्रधान !! हे पतिवंता !!
क्या क्या उपमाएं लाया था
अब क्या उपमा दोहराता हूँ

मैं  भी पत्नी का पीड़ित हूँ
बस पत्नी ,राग सजाता हूँ



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