हकीकत की जुस्तजू में
मोह्हबत ही भुला बैठें हैं
अभी तक शोखियाँ जिनकी हमें
जायज़ नहीं लगीं थीं कभी
न जाने कैसे उन्हीं से
ये दिल लगा बैठें हैं
मोह्हबत ही भुला बैठें हैं
अभी तक शोखियाँ जिनकी हमें
जायज़ नहीं लगीं थीं कभी
न जाने कैसे उन्हीं से
ये दिल लगा बैठें हैं
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