Saturday 7 December 2013

कुछ ऐसे भी चेहरे हैं
जिनके अल्फ़ाज़ों में
रंग ही सजता था

बदल गए अंदाज़ पुराने
उन शख्सों से आज पुराने
बदल न पायी जीवन की
बिसरी यादोँ का खेल नया

वो आज ज़माना छूट गया
उस रंग से रौनक रूठ गया
अब दिल की स्याही सूखी है
लगता किस्मत भी रूठी है 

चेहरे अनजान से लगते हैं
बिखरे अब जान से लगते हैं
स्याही का मोल समझ लेना
ये है अनमोल समझ लेना 

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